पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/१६८

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जहांगीरनामा।

उसने एक पक्षीका (जिसे अब पीरू कहते हैं) और एक बन्दर का विशेष करके वर्णन किया है चकोरोंके वास्ते लिखा है कि मेरे पिताने इनके बच्चे लेनेका बहुत परिश्रम किया पर उस वक्त तो नहीं हुए। अब मेरे समय में इनके अंडे लिये और मुर्गियोंके नीचे रखे गये तो दो वर्षमें ६०।७० बच्चे निकले ५०।६० बड़े भी होगये जो सुनता है इसका बड़ा अचम्भा करता है।

इन दिनोंमें महाबतखां, एतमादुद्दौला, एतकादखां आदि अमीरों के मनसब बढ़े। महासिंहका मनसब पांच सदी जात और पांच सौ सवारों बढ़नेसे तीन हजारी और दो हजार सवारोंका होगया।

१९ फरवरदीन (चैत्र सुदी ६) को मेख(१) संक्रांतिका उत्सव हुआ खुर्रमका मनसब दस हजारीसे बारह हजारी होगया। ऐसेही और भी कई अमीरों के मनसब नौरोजके प्रसंगसे बढ़े।

दलपत(२)।

इसी दिन दलपत दक्षिणसे आया उसका बाप रायसिंह मर चुका था इसलिये बादशाहने उसको राय पदवी देकर खिलअत पहनाया। रायसिंहके एक बेटा और भी सूरजसिंह नामका था जिसकी मासे रायसिंहको अधिक प्रेम था। दलपत टीकाई था तोभी वह सूरजसिंहको अपनी जगह बैठाना चाहता था। बादशाह लिखता है--"जिन दिनोंमें रायसिंहके मरनेकी बात चल रही थी सूरजसिंहने अल्पबुद्धि और अल्पावस्था होनेसे प्रार्थना की कि बापने मुझे अपनी जगह बिठाकर टीका दिया है। यह बात मुझको नहीं भाई। मैंने कहा कि जो बापने तुझे टीका दिया है तो हम दलपतको टीका देते हैं।" बादशाहने अपने हाथ से दलपतको टीका देकर उसके पिताकी जागीर और वतन उसको दे दिया।


(१) चण्डू पञ्चाङ्गमें भी मेख संक्रान्ति इसी दिन लिखी है।

(२) बीकानेरका गव।