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संवत् १६६९।

एतमादुद्दौला।

एतमादुद्दौलाको जड़ाऊ कलम दावात बादशाहने दी।

गांव।

कमाऊं का राजा लखमीचन्द पहाड़के मुख्य राजोंमेंसे था। उसका बाप राजा रुद्र भी अकबर बादशाहकी सेवामें आया था। आनेसे पहिले अर्ज कराई थी कि राजा टोडरमलका बेटा मेरा हाथ पकड़कर सेवामें लेजावे। बादशाहने वैसाही किया। इसी प्रकार लखमीचन्दने भी अर्ज कराई कि एतमादुद्दौलाका बेटा आकर मुझे दरबारमें लेजावे। बादशाहने शापूरको भेजा। राजा उसके साथ आया। गोट जातिके उत्तम घोड़े शिकारी पक्षी बाज जुर्रे शाहीन कुतास(१) कस्तूरीके नाफे कस्तूरी हरनके चमड़े जिसमें नाफे भी लगे थे तलवारें और खञ्जर जिनको वह लोग खांड़े और कटार कहते हैं और अनेक प्रकारकी चीजें भेटको लाया। पहाड़ी राजों में यह राजा इस बातके लिये अति प्रसिद्ध था कि इसके पास सोना बहुत है। लोग इसके देशमें सोनेकी खान बताते थे।

दक्षिणमें हार।

दक्षिणके काम खानआजमकी बेपरवाईसे नहीं सुधरे। अबदुल्लहखांकी हार हुई। बादशाहने इन बातोंका निरूपण करने के लिये अबुलहसनको बुलाया था। बहुतसी पूछ ताछ करने पर विदित हुआ कि अबदुल्लहखां बारहकी हार तो उसीके घमण्ड दौड़ धूप और किसीको बात नहीं सुननेसे हुई पर इसमें अमीरोंकी ईर्षा और फूटका भी अंश मिला हुआ था। बात यह ठहरी थी कि इधर अबदुल्लहखां गुजरातके लशकर और उन अमीरों के साथ जो उसकी सहायता पर नियत हुए थे नासिक त्रिम्बकके रास्तसे दक्षिणको जावे। यह लशकर राजा रामदास खानआलम सैफखां अली मरदान बहादुर तथा दूसरे नामी और साहसी सरदारोंसे


(१) सुरागायकी पंछके बाल।