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संवत् १६७०

राखी न बांधे। परन्तु राखीके दिन जो ९ वीं(१) अमरदादको था और वही दङ्गल हुआ दूसरे लोगोंने वह देखादेखीकी बात हठसे नहीं छोड़ी। तब मैंने इसी वर्षके लिये स्वीकार करके कहा कि ब्राह्मण लोग उसी प्राचीन रीतिसे डोरे और रेशम बांधा करें।"

इसी दिन अकबर बादशाहका उर्स(२) था बादशाहने खुर्गमको उसके रौजे पर उर्स करनेको भेजा और दस हजार रुपये अपने दस विश्वासपात्रोंको फकीरोंके लिये दिये।

इसलामकी भेट।

१४ अमरदाद (भादों बदी ७) को इसलामखांकी भेट बादशाह की सेवामें उपस्थित हुई उसने बङ्गालसे २८ हाथी ४० टांगन ५० नाजिर और पांच सौ उत्तम बस्त्र सितारगांवके भेजे थे।

समाचारपत्र।

यह प्रवन्ध किया गया था कि सब सूबों और विशेषकरके सीमा प्रान्तके समाचार कर्णगोचर होते रहें और इस काम पर दरबारसे वाकआनवीस (समाचार लिखनेवाले) भेजे जाते थे। बादशाह लिखता है कि यह जाबता मेरे बापका बांधा हुआ है। मैं भी


(१) ९ अमरदादको भादों बदी १ थी।

(२) हिन्दुस्थानके मुसलमानोंमें यह रीति है कि जिस दिन कोई बड़ा या प्यारा पुरुष मरता है तो सालभरके बाद उसी दिन मौलवियों और दूसरे लोगोंको बुलाकर खाना खिलाते हैं। सुगन्ध लगाते हैं गानाबजाना करते हैं खैरात बांटते हैं इसीको उर्स कहते हैं। कहीं कहीं एक सप्ताह तक भी उर्सकी मजलिसें होती रहती हैं। परन्तु ९ अमरदादको अकबर बादशाहका उर्स कैसे हुआ? वह तो ३ आबानकी रातको मरा था यह कुछ समझ नहीं आता। हां १९ अमरदादको १३ जमदिउस्मानी थी और उसके देहान्तके दिन भी यही तारीख थी इसलिये इस साल ९ अमरदादको हुआ होगा।