पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/१९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७८
संवत् १६७०।

खासेका घोड़ा, जड़ाऊ तलवार, जड़ाज खपवा, फूल कठारे सहित देकर बिदा किया अगले सिपाहियोंके सिवा जो पहलेसे खाना- जमकी सरदारीमें इस मुहिम पर लगे हुए थे बारह हजार सवार और दिये। उनके अफसरों को खासेके घोड़े खासके हाथी और श्रेष्ठ सिरोपावोंसे सुशोभित करके उसके साथ दिया। फिदाईखां इस लशकरका बखशी नियत हुआ।

काशमीर।

उसी मुहूर्तमें सफ़दरखांको हाशिमखांकी जगह काशमीरको को मूबेदारी पर घोड़ा खिलअत देकर भेजा।

बखशीकुल।

११ दे (माध बदी ५।६) बुधवारको खाजा अबुलहसन बखशो- कुल अर्थात् मौरबखशौ हुआ।

देग।

बादशाहने खाजाजीको दरगाहके वास्ते एक बड़ी देग(१) आगरेमें बनवाई थी। वह इन दिनों में आई तो उसमें खाना पकवाकर पांच हजार फकीरोंको अपने सामने खिलाया और सबको रुपये भी दिये।

___________________





(१) यह देग अबतक मौजूद है इसमें कई मन चावल खांड़ और घी डालकर रातको पकाते हैं और तड़केही लुटा देते हैं। साल भरमें दोचार देगें चढ़ा करती हैं। उसके मेले में बड़े आदमी अपने नाम के वास्ते देग चढ़ाते और लुटाते हैं।