पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/१९६

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दशवां वर्ष।

सन् १०२३

फागुन सुदी ३ संवत् १६७० से माघ सुदी १ संवत् १६७१ तक।

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१ असफंदार १०(१) सुहर्रम (फागुन सुदी १०) को बादशाह अजमेरसे नीलगायोंके शिकारको गया। नवें दिन लौट आया। फिर हाफिज जमालके चश्म पर गया जो शहर से दो कोस है जुर्मको रातको वहां रहा।

इसलामखांकी मृत्यु ।

३ (फागुन सुदी १२ )को इसलामखांके मरनेको खबर आई कि वह ५रज्जब (गुरुवार भादों(२) सुदी)को मरगया। बंगालमें इसने बादशाही राज्यको खूब बढ़ाया था इसका मनसब भी छः हजारी जात और छः हजार सवारका था।

खानाजम पर कोप।

बादशाहने ख'माजमको शाहजादेसे अनबन सुनकर इब्रा- होम हुसैनको उसके समझानेके वास्ते भेजा और कहलाया कि जब तू बुरहानपुर में था तो तूने मुझसे यह काम मांगा था। तू इसमें अपना कल्याण समझता था ओर लोगों में बैठकर कहा करता था कि जो इप्स लड़ाई में मारा जाऊंगा तो शहीद इंया और जीतूंगा तो गाजी कहलाऊंगा। फिर तूने लिखा कि बाद- शाही सवारीको आये बिना यह फतह होनी मुशकिल है और तेरी सलाहसे हमारा अजमेर में आना हुआ। अब तूने शाहजादेको बुलाया। मैंने बाबा खुर्रमको जिसे कभी अलग नहीं किया था, तेरे भरोसे पर भेजा। यह सब काम तेरोही सलोहसे हुए हैं।


(१) पञ्चाङ्ग के गणितसे । (२) यह खबर न जाने क्यों छः महीने पोछे आई थी।