चौथी वेगमसे २३ शहरेवर सन ९९८ (आखिन बदी २ सवत् १६४७) को बहारबानू बेगम पैदा हुई।
दूसरी बेगमसे २९ रवीउलअब्बल गुरुवार सन १००० (माघ सुदी १ संवत् १६४८) को सुलतान खुर्रमका जन्म हुआ।
ता० ६ महर सन १००७ (आश्विन बदी १४ संवत् १६५५) को अकबर वादशाह तो दक्षिण फतह करनेके लिये गया और अजमेर का सूबा शाहसलीमको जागीरमें देकर राणाको सर करनेका हुक्म देगया।
शाहकुलीखां महरम और राजा मानसिंहकी नौकरी इनके पास बोली गई।
बङ्गालेका सूबा जी राजाको मिला हुआ था राजा अपने बड़े बेटे जगतसिंहको सौंपकर शाहको सेवामें रहने लगा।
शाह सलीलने अजमेर आकर अपनी फौज राणाके ऊपर भेजी और कुछ दिनों पीछे आप भी शिकार खेलता हुआ उदयपुर तक गया जिसको राणा छोड़ गया था और सिपाहको पहाड़ोंमें भेजकर राणाको पकड़नेकी कोशिश करने लगा।
यहां खुशामदी और स्वार्थों लोग जो चुप नहीं बैठा करते हैं उसके कान भरा करते थे कि बादशाह तो दक्षिणको लेने में लगे हैं वह मुल्क एकाएकी हाथ आने वाला नहीं और वह भी बगैर लिये पीछे आनेवाले नहीं। इसलिये हजरत जी यहांसे लौटकर आगरसे परेके आबाद और उपजाऊ परगनोंको लेलें तो बड़े फायदे की बात है। बंगालेका फसाद भी जिसकी खबरें आरही हैं और जो राजा मानसिंहके गये बिना मिटनेवाला नहीं है जल्द दूर हो जायगा। यह बात राजा मानसिंहके भी मतलबकी थी क्योंकि उसने बंगालेको रक्षाका जिम्मा कर रहा था। इससे उसने भी हां में हां मिलाकर लौट चलनेको सलाह दी।
शाह सलीम इन बातोंसे राणाकी मुहिम अधूरी छोड़कर इला- हाबादको लौट गया। जब अगरेमें पहुंचा तो वहांका किलेदार