पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/२०९

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ग्यारहवां वर्ष।

सन् १०२४ ।

माघ सुदी २ संवत् १६७१ ता० २१ जनवरी सम् १६१५ से

माघ सुदी २ सं० १६७२ ता० १० जनवरौ ९६१६ तक।

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रानाका खुर्रमके पास आना।

इस महीनेके अन्तमें बादशाह अजमेरके बाहर शिकार खेल रहा था कि खुर्रमका नौकर मुहम्मदवेग उसकी अर्जी लेकर आया । उसमें लिखा था कि रानाने बेटों सहित आकर मुजरा किया। इस बातके ज्ञात होतेही बादशाइने खुदाको दरगाहमें शुक्रका सिजदा किया और मुहम्मद बेगको हाथी घोड़ा तथा जुलफिकार खांका खिताब दिया।

रानाके अधीन होने का हत्तान्त।

अर्जी में यह लिखा था कि २६ बहमन (फागुन वदी २) रवि- वारको रानाने जिस अदबसे बादशाही तावेदार मुजरा करते हैं उसो तौरेता से खुर्रमको मुजरा किया। एक बड़ा प्रसिद्ध माणिक्य जो उसके घरमें था कुछ जड़ाऊ पदार्थ, अपने पासके शेष सात हाथी और ८ घोड़े नजर किये। खुर्रमने भी उसके ऊपर लपा दिखाई। रागा जब उसका पांव पकड़ कर अपने अपराधोंको क्षमा मांगने लगा तो शाहजादेने उसका सिर बगलमें उठा उसको ऐसी तसल्ली की जिससे उसको शान्ति होगई। फिर बढ़िया खिलश्रत -जड़ाऊ तलवार जड़ाऊ सजाईका घोड़ा और चान्दोको सौंजका हाथी उसको दिया। उसके साथके मनष्योंमें सिरोपाव पानेके योग्य एक सौसे अधिक नहीं थे इस लिये सौ सिरोपाव पचास घोड़े और १२ जड़ाऊ खपवे उनको दिये। जमींदारोंको यह चाल है कि बाद-


पा कायदा।'

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