पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/२१४

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जहांगीरनामा।

१४ सफर (चैत्र सुदी १) चन्द्रवार संवत् १९७२ को आधीरात गये धन लग्न में खुर्रमके घर में आसिफखांको बेटोसे पुन जन्मा । बादशाहने उसका नाम दाराशिकोह रखा।

इसी दिन एतबारखांकी भेंटमेंसे चालीस हजार रुपयेका माल लिया गया।

ग्यारहवें दिन सुरतिजाखांको भेटसे सात लाल एक मोतियोंकी माला और २७० मोती एक लाख ४५ हजार रुपयेक खोशात हुए।

बारहवें दिन मिरजा राजा माऊसिंह और रावतशंकर (राना सगर) को भेट हुई।

तेरहवें दिन खाजा अबुलहसनने बत्तीस सौ रुपयेके रत्न भेट किये।

चौदहवें दिन अबुल्लहसनका मनसब चार हजारी जात और बारह सौ सवारोंका होगया।

ईरानका दूत।

इसी दिन ईरानका वकौल मुस्तफा बेग आया। उसको शाहने गुर्जिस्तान फतह करके भेजा था। कई घोड़े जंट और कुछ हलब देशके कपड़े जो रूमसे शाहके वास्ते आये थे और नौ बड़े फरंगी कुत्ते फाड़नेवाले (जो मंगाये गये थे) उसके हाथ पहुंचे

कांगड़े पर सेना।

इसीदिन (चैत्र सुदी ५ शुक्रवार)को मुरतिजाखां किले कांगड़ेको फतह करने के लिये. बिदा हुआ। उक्त किला संसारके सुदृढ़ दुर्गा मेंसे या और मुसलमानी राज्य होनेके समयसे अबतक किसी बाद- शाहने उसको नहीं जीता था। एक बार अकबर बादशाहके हुकम से पन्जाबको सेजाने उसको घेरा भी था परन्तु फतह न हुआ।

मुरतिजाखांको जाते समय हाथो तलापर समेत मिला और

  • यह वही सगर है जिसको पहले रानाको पदवी मिली पर

रानाले सन्धि होजाने पर यह रावतही रह गया। ।