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पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/२१५

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संवत् १९७२

राजा बासूका वेटा सूरजमल भी जिसका देश इस किलेसे मिला हुआ था वहां भेजा गया। उसके मनसबमें पांच सदी जात और पांचसौ सवार बढ़ाये गये।

राय सुरजसिंहने अपनी जगह और जागीर से आकर सौ मोहरें भेट कींं।

सतरहवें दिन मिरजा स्तमने अपनी भेट दिखाई उसमेंसे पन्द्रह हजार रुपयेका और एतकादखांकी भेटमेंसे अठारह हजार रुपयेका माल बादशाहने लिया।

अठारवें दिन पन्द्रह हजार रुपयेका माल जहांगीरकुलीखांकी भेटमेंसे पमन्द हुआ।

बीसवें दिन चैत्र सुदी ११ गुरुवारको दोपहर साढ़े चार बड़ी दिन बीतने पर मेख संक्रान्ति लगौ । बादशाहने दरबार किया । जब पहर भर दिन रहा तो नूरचशमको चला गया। महाबत खांकी भेट वहां हुई जो बड़ी कोमती थी। बादशाहने एक लाख अड़तालिस हजार रूपयेका माल उसमें लेलिया एक लाख रुपयेका तो एक जड़ाऊ खपवाही था जिसे उसकी प्रार्थनासे सरकारी सुनारोंने बनाया था।

ईरानके दूत मुस्तफा बेगको दस हजार रुपये और बीस हजार दरब दिये गये।

२१ (चैत्र सुदी १२) को अबदुलगफूरके हाथ दक्षिणके पन्द्रह अमीरोंको सिरोपाव भेजे गये।'

राजा विक्रमाजीत अपनी नागौरको बिदा हुआ. परम नरम खासा उसको मिला।

२३ (चैत्र सुदी १४) को इब्राहीमखां बिहारका सूबेदार हुआ। जफरखांको दरबारमें अानेका हुक्म गया।


- जोधपुर

- चण्ड पञ्चांग, मेख संक्रान्ति चैत्र सुदीको ४६ घड़ी ३४ पल पर लिखी है।