भी उसको अपना इकरंगा खैरखाह समझता था इसलिये अकबरने उसको बुलानेका फरमान भेजकर लिखा कि फौज और लशकर अपने बेटे अबदुर्रहमानको सौंपकर आप बहुत जल्द हाजिर हो।
जब सलीमको शैखके बुलानेको खबर पहुँची तो उसके आने में अपनी बात बिगड़ती देखकर उसने सोचा कि जो वह आजावेगा तो फिर और कुछ फसाद उठावेगा और जबतक वह रहेगा हमारा जाना दरगाहमें न होगा इसलिये इसका इलाज पहिलेसेही करना चाहिये।
दक्षिण और आगरेका रास्ता राजा बरसिंहदेवके सुल्कमें होकर था और यह बहादुर राजा बादशाहसे अकसर बिगड़ाहुआ रहता था इसलिये शाहने इसीको शैखके मारनेका हुक्म दिया। राजा जाकर घातमें बैठ गया। जब शैख गवालियरसे १० कोस पर पहुंचा तो राजाने बहुतसे सवार प्यादोंके साथ जाकर शैखका, रास्ता रोका और उसको मारकर उसका सिर इलाहाबादमें भेज दिया।
शैखक मारे जानेसे उधर तो बादशाहको बड़ा दुःख हुआ और इधर सलीम भी बहुत लज्जित हुआ।
बादशाहने सलीमको तसल्ली देकर लेआनेके लिये अपनी लायिक बेगम सलीमासुलतानको रवाने किया। फतहलशकर नामका हाथी खिलअत और खासेका घोड़ा साथ भेजा।
सलीम दो मंजिल आगे बढ़कर बेगमको बड़े अदब और धूम धड़क्केसे इलाहाबादमें लाया। और फिर उसके साथही बापकी सेवामें रवाना हुआ। जब आगरेके इलाकों में पहुँचा तो बादशाहको अर्जी भेजी जिसमें लिखा था कि जब हुजूरने इस बन्दे के कसूर माफ कर दिये हैं तो हजरत मरयममकानीचे अर्ज करें कि वे तशरीफ लाकर गुलामको हुजूरको खिदमतमें लेजावें और हुजूरी ज्योतिषियोंको सुहर्त देखनेका हुक्म होजावे ।
बादशाहने अपनी मांके दौलतखाने में जाकर पोतेको अर्ज दादी को सुनाई और उसके कबूल करलेने पर जवाब में लिखा कि मिलने