के वास्ते मुहूर्त्तका क्या बहाना करते हो मिलनाही स्वयं मुहर्त्त है।
इस फरमानके पहुंचतेही सलीमने जल्दीसे कूच करदिया। इधर से मरयममकानी वेगम एक मंजिल आगे जाकर पोतेको अपने दौलतखाने में लेआई। वहां बादशाह भी आगया। वेटेने बापको कदमों में सिर रख दिया बाप बेटेको छातीसे लगाकर अपने घर ले आया।
सलीमने १२ हजार मुहरें और ९७७ हाथी अकबरको भेंट किये। उनमेंसे ३५० अकबरने रख लिये बाको वापिस करदिये। दो दिन पीछे अपनी पगड़ी उतार कर सलीमके सिर पर रखदी। और राणाकी मुहिम पूरी करने का हुक्म दिया। दशहरेके दिन सलीमने उधर कूच किया। निम्नलिखित अमौर वादशाहके हुक्म से उसके साथ गये।
जगन्नाथ, राय रामसिंह, माधवसिंह, राय दुर्गा, राय भोज, हाशमखां, करोवेग, इफ्तखार वेग, राजा विक्रमाजीत, मोटाराजा के वेटे शक्तसिंह, और दलीप, खाज हिसारी, राजा शालिबाहन, मिरजा यूसुफखांका बेटा लशकरी, आसिफखांका भाई शाहकुली, शाहबेग कोलाबी।
शाहने फतहपुरमें ठहरकर इस मुशकिल कामके लायिक लश- कर और खजाना मिलने की अर्जी भेजी मगर दीवानीने बेजा ढील करदी। तब शाहने फिर बादशाहको अर्जी लिखी कि यह गुलाम तो हजरतके हुक्मको खुदाके हुक्मका नमूना समझकर बड़े चावसे इस खिदमतको करना चाहता है मगर किफायती लोग इस मुहिम का सामान जैसा चाहिये नहीं करते हैं तो फिर वेफायदा अपनेको हलका करके वक्ता खराब करना ठीक नहीं है। हजरतने कई दफे सुना होगा कि राणा पहाड़ोंसे बाहर नहीं निकलता है और हर रोज एक नये बिकट स्थानकी ओटमें चला जाता है और जहां तक उससे होसकता है लड़ता नहीं है। उसके कामकी तो यही तदबीर है कि लशकर हर तरफसे जाकर उन पहाड़ोंको