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जहांगीरनामा।

अहदाद पठानको हार।

अकबर बादशाहके समयसे अबतक ग्रहदादका उपद्रव काबुल के पहाड़ों में चला जाता था । दस वर्षसे लगातार फौजें उसके ऊपर जारही थीं जिनसे वह लड़ लड़कर अन्तको जरखी नामक एक पहाड़ौमें जा बैठा था। उसको भी खानदौरांने घेर रखा था। अहदाद रातको अनाज और चारा लानेके वास्ते निकला करता था। कभी कभी उनके साथी मवेशी चरांनेको पहाड़ीसे उतरते थे। एक रात जरखौको तराईमें अहहादसे और खानदौरांसे मुठभेड़ होगई। अहदाद दोपहर तक लड़कर भागा। परन्तु जरखोम जानेका अवसर न पाकर कन्धारको ओर निकल गया। बादशाही फौजने जरखोमें प्रवेश करके उसके घर जला दिये तीनसौ पठान मारे गये और एकासौ कैद हुए।

अम्बरको हार।

बहुतसे बरगी जो दक्षिण में उपयुक्त और मजबूत लोग हैं अंबर से रूठकर बालापुरमें शाह नवाजखांके पास चले आये थे। शाह नवाजखांने आदमखां, याकूतखां, जादूराय बापूकाटिया आदि उनके सरदारोंकों हाथी घोड़े रुपये और सिरोपाव देकर शाही नौकरी में लगा लिया और फिर इनको साथ लेकर अंवरके ऊपर कूच किया । उधरसे दक्षिणी सरदार महलदार, दानिश, दिलावर, बिजली और फीरोज सेना लेकर आये। परन्तु लड़ाई में परास्त होकर अंगरके पास लौट गये। अंबरने बड़े अभिमान से लड़नेका उद्योग करके बादशाहो छावनी पर चढ़ाई को । कुतुबु- लसुल्क और आदिलखांको सेनाएं भी एक तरख तोपखाने सहित उसके साथ थीं। २५ बहमन (फागुन बदौ १२) रविवारको पिछले दिनसे अन्धेरे और उजालेके दो दलों में दंगल हुअा। पहले बाण -और गोले चले। फिर दाराबखांने जो. अगली सेनाका अफसर था राजा बरसिंहदेव रायचन्द अलोखां तातारी और जहांगीरकुलो आदि सरदारों के साथ तलवारें सूतकर शत्रुको अगली सेनापर भावा