पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/२६७

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संवत् १६७३।

Horror संवत् १६७३। २५१ wwra.mm मागुन नदौ ३ को साढ़े तीन कोन पर देपालपुरमें भेरिये तालाब गरी हुए। यह उजला और सरप्त रयान था इसलिये वादशाह चार दिन तका यही रहकर जलजन्तुषोंका शिकार खेलता रहा। वहा अहमदनगरले बढ़िया अंगूर आये जो वड़ाई में तो कावुलने पड़िया अंगूरों को नहीं पहुंचते थे परन्तु उसमें उनसे वाम न थे। एक बड़ा वटवृक्ष। ११ (पागुन वदी १०) को बूच होकर सवातीन कोस पर दौल- तामाटो परगजेने डेरे हुए। ११ को मुकाम रहा। बादशाह शिक्षारको गया। गांव शेखोपुरेको सीमामें उसने एक बटलक्ष देखा जो बहुत ही बड़ा था। मोटाई १८॥ गज और ऊंचाई जड़मे डालियोंगो चोटी तक १२८। गजको घो। शाखाएं जो उनमें पाटी थीं उनका पोसाय २० ३॥ गजमें था। उनमेंसे एक शाखा जो हाथी दांतो आकारमें थी चालीस गज लम्बी थी। अकबर बादशाह मन इधर होकर निकला था तो उसने एका जड़के डालेमें सवा तीन माजके ऊपर अपना पञ्जा स्मृतिके वास्ते खुदवा दिया था। अब इस जान्दशाहने भी दूसरी जड़वो शाखामें ८ गजको ऊपर अपनी हथेली मा चिन्ह खुदवा दिया और चिरस्यायो रहनेके लिये दोनों पक्षीको मकराने पर भी खुदवाकर उस बड़की जड़में लगा देनेका हुन्न फरमाया। फिर उसके नीचे एक सुन्दर चबूतरा बना देगेका हुक्म दिया। बादशाह जब युवराज था तो मौर जियाउद्दीन कजनीनी (मुस्तफाखां) से मालदह का परगना देने की प्रतिज्ञा को थो अब इस स्थान पर उसका पालतमगा कर दिया। केशव मारू कमालपुरा। यहांसे लशकर तो १३ (फागुन बदौ ११) को बालछमें गया. और बादशाह कुछ वेगमों. पारिषदों और निन्न सेवकों सहित बन ___* मालदह एक प्रसिद्ध परगना बंगालमें है जहां शाम बहुत विख्यात हैं। । लाल मोहरका पट्टा। -