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पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/२७०

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२५४ जहांगीरनामा। प्रवेश करनेको हाथी पर सवार हुआ और एक पहर ३ घड़ी दिन चढे वहां पहुंचकर उस राजभवन में उतरा जो उसके वास्ते बना था। डेढ़ हजार रुपये रास्ते में लुटाये। मांडी अजमरसे १५८ कोस है बादशाह चार महीने दो दिनमें ४६ कूच और ७८ विश्राम करके वहां पहुंचा था। इन ४६ कूचों में डेरा भी दैवयोग से सुरम्य स्थानों तालाबों नदियों और बड़ी बड़ी नहरोंके तट पर होता था जहां हरभरे वृक्ष, लहलहाते खेत और अफीमको फलीहुई क्यारियां मिलती थीं। कोई दिन शिकारसे खाली नहीं गया। बादशाह लिखता है कि मैं तमाम रास्ते हाथी और घोड़े पर बैठा बनविहार करता और शिकार खेलताहुआ आता था। यात्रामें कुछ कष्ट नहीं मालूम हुआ मानो एक बागसे दूसरे बागमें बदली होती थी। इन शिकारों में आसिफखां, मिरजा रुस्तम, मौरमोरां, अनौराय, हिदा- यतउल्लह, राजा सारंगदेव, सय्यद कासू और खवासखां हमेशा मेरी अर्दली में रहते थे। मांडोंक रानभवन। बादशाहने अजमेरसे अबदुलकरीम मामूरीको मांडोंमें अगले हाकिमौकी इमारतोंके सुधारके वास्ते भेजा था। उसने बादशाह के अजमेर में रहने तक कई पुराने मकानों की मरम्मत करादी थी और कई स्थान नये बनवाये थे। बादशाह लिखता है-"उस ने ऐसा निवासस्थान प्रस्तुत करदिया था कि उस समय किसी जगह वैसा सुन्दर और सुरम्य भवन न था। तीनलाख रुपये इसमें लगे थे। ऐसो बिशाल इमारत उन बड़े शहरों में होना चाहिये थी जो हमारे निवास करनेको योग्यता रखते हैं।" मांडीगढ़का विवरण। बादशाह लिखता है-"यह गढ़ एक पहाड़के ऊपर बना है। इसका घेरा दस कोस नापा गया। बरसातके दिनों में इस गढ़ के समान कोई स्थान स्वच्छवायु और सुन्दरतासे पूर्ण नहीं होता। यहां सिंह संक्रान्तिमें रातको ऐसौ ठण्ड पड़ती है कि रजाई ओढ़े