२७८ • संवत १६७४। न्यौछावर किया। "सरनाक हाथोको पास मंगाकर देखा निस्संदेह उसके जो गुण सुने धे सब ठोके थे। • डीलडौल सुंदरता और सजीलेपनमें पूरा था। ऐसी छबिका हाथी कम देखा था। मेरी आंखोंको बहुतही भला लगा। इसलिये मैं खयं सवार होकर उसे खास दौलतख नेके भीतर तक लेगया और कुछ रुपये भी उस पर न्यौछावर किये। हुक्म दिया कि दौलतखाने में ही बंधा करे। उसका नाम नूरबखत रखा गया।।: . . . :: .. ..' बगलाणेका भरजीव। . “कार्तिक बदौ २ चन्द्रवारपाको बगलाणके जमीदार भरजीवने आकर प्रणाम किया बादशाह लिखता है-"इसका नाम प्रताप है। जो कोई वहांका राजा होता है उसको भरजीव कहते हैं। बग- लाणकी बिलायत गुजरात खानदेश और दक्षिणके बीचमें है। इस देशमै पानीके झरने अच्छे हैं। पानी बहुत बहता है। यहां प्राम अत्यंतरसौले और बड़े होते हैं। ८ महीने तक मिलते है। अंगूर भी बहुत होते हैं परन्तु उत्तम नहीं होते। यह राजा गुजरात दक्षिण और खानदेशक हाकिमोंसे मेल तो रखता था पर आज तक किसी के पास नहीं गया था। जब गुजरात दक्षिण और खानदेशमें स्वर्गवासी इजरत का अधिकार हुआ तो यह बुरहान पुरमें उपस्थित होकर सेवकोंमें शामिल हुआ था। उसे तीन हजारौ जातका मनसब मिला था। अब जो शाहजहां बुरहानपुरमें पहुंचा तो ११ हाथी भेट करके मिला और उसके साथ दरबारमें आकर अपनी भक्तिके अनुसार राजकीय कपासे सन्मानित हुआ। जंडाऊ खङ्ग हाथी घोड़ा और खिलअत तो मिलाही था कई दिन पोछे तीन अंगूठियां लाल होरे और याकूतको भी मैंने उसको दीं।" नूरजहांका उत्सव। २७ (कार्तिक बदौ ५) गुरुवारको नूरजहां बेगमने दक्षिण को विजयका उत्सव करके शाहजहांको इतने दिव्य पदार्थ दिय- . सा मूलमें इस दिन शुक्रवार लिखा है सो गलत है। + अकबर बादशाह।
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