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पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/२९४

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२७८
जहांगीरनामा।

२७८ जहांगीरनामा। एक लाख २४ हजार रुपयेके आंके गये। उनमें एक लाल . ११ मिसकाल (४८॥ रत्ती ) का है जिसको पिछले वर्ष अजमेरमें एक फरंगी लाया था। दो लाख मूख्य मांगता था जौहरी ८० हजार देते थे इससे सौदा नहीं बना था। फिर वह बुरहानपुरमें गया और महाबतखाने एक लाख रुपयेमें उसको लेलिया। फिर राजा भावसिंहने सेवा आकर १ हजार रुपये कुछ रत्न और कुछ जड़ाऊ पदार्थ भेट किये। ऐसेही खानखानांका बेटा, दाराबखां, याबदुलहखांका भाई, सरदारखां, शुजाअतखां अरब, दियानतखां, मोतमिदखां बखशी, और उदाराम, जो निजासुलमुल्कके श्रेष्ठ सरदारों में थे और खुरमके बचन देनेसे शुभचिन्तकोंको श्रेणीमें प्रविष्ट हुए थे और दूसरे अमौर अपने अपने मनसबोंके क्रमसे मुजरा करनेको आये। इनके पीछे भादिलखांके वकीलोंने जमीन चूमकर उसकी अरजी येश को। इससे पहिले रानाको विजय करनेके प्रसादमें बीस हजारी जात और १० हजार सवारीका मनसब इस उग्रभागी पुत्रको मैंने प्रदान किया था और जब दक्षिण जीतनको जाता था तो शाह की पदवी दी थी अब इस उत्तम सेवाके बदले में मैंने तीस हजारी जात और बीस हजार सवारोंका मनसब और शाहजहांका खिताब इनायत फरमाया और हुक्म दिया कि अबसे दरबार में एक चौको सिंहासनके पास रखदी जाय जिस पर यह पुच बैठा करे। यह एक सपा इसौके वास्त कौगई जो पहिले हमार बंशमें प्रचलित न थी। ५० हजार रुपयेका एक खासा खिलअत जिसमें ४ कुब्ब ( पान ) जरीके सिले हुए थे और जिसके गले, बांहों, और पल्लोंमें, मोती टके हुए थे, जड़ाऊ तलवार जड़ाऊ परतला और जड़ाऊ कटार उसको दिया और उसका मान बढ़ानेके लिये झरोकेसे नीचे आकर एक थाल जवाहिरातका और एक मोहरीका उसके ऊपर