पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/२९९

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संवत् १६७४।

। मंवत् १६७४-1 • महीपति-आदिलखांका मेजा हुआ जिसका मोल मैंने १ लाख रुपये नियत करके दुर्जनसाल नाम रखा। . .:: बखत्बलन्द-यह भी आदिलखांकी हौ भेटमेंका है एक लाख रुपयेका बांका गया। मैंने इसका नाम “गरांबार रखा। चौध और पांचवें हाथोका नाम कद्दमखां और इमामरा था। (८) एक सौ अर्बी और इराकी घोड़े जिनमें ३ जड़ाऊ साजदार हैं। 'शाहजहांने जो भेट अपनी, और दक्षिणके दुनियादारोंसे ली हुई बादशाहको दिखाई थी बहुत बडी थौ। उसमें से जो बाद- शाहने छांट करलौव्ह २० लाख रुपयेकी थी।। २ लाख रुपये को भेट उसने अपनी मा नूरजहांको दी । ३००००) की भेट दूसरी मताओं और वेगमोंको दी.। सबका मूल्य २२ लाख ६० हजार रुपयेः हुआ। बादशाइ लिखताः पेट कभी इस राज्यमें नहीं देखी गई थी। _ 'गुजरातको कुच। १२ (कार्तिक सुदौ ५) शुक्रवारको बादशाइने अपनी माता और वेगोको तो सब कारखानोंके साथ आगरे भेजा और आप रातको अहमदाबाद और समुद्रको शोभा देखने तथा लौटते हुए हाथियोंका शिकार खेलनेके बिचारसे गुजरातको रवाना हुआ मांडोसे उतर कर नालछमें ठहरा : .. . . . . . महाबतखां। शनिवारको रातको महाबतखांको काबुल जानेको पाना हुई घोड़ा और खासा हाथौ चलते समय मिला। : .:...: कल्याण टोडरमलका बेटा। .. राजा टोडरमलका बेटा कल्याण उड़ीसेसे आकर कई दिनों तक दरबार में प्रानेसे विमुख रहा था क्योंकि उस पर कई दोष लगाये गये थे। परन्तु निर्णय होने पर निर्दोष निकला । बादशाह ने घोड़ा और खिलअत देकर उसे महाबतखांके साथ बंगशमें भेजा ।