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पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/३०२

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२८६
जहांगीरनामा।

२८६ जहांगीरनामा। राजा भोज यहीं रहता था। उसके समयरी एक हजार वर्ष व्यतीत हुए हैं। मालवेके बादशाह भी बहुत वर्षातक धार में रहे । सुलतान मुहम्मद तुगलक जब दक्षिण विजय करने को जाता था तो उसने यहां छिले हुए पत्थरोंका किया एक टोलेपर बनाया जो बाहरसे तो बहुत सुन्दर है परन्तु मौतर सूना है। मैंने लम्बाई चौड़ाई मापनेका हुक्म दिया तो किला मौतरसे लंबा १२ जरीब ७ गज और चौड़ा ७ जरीव १३ गज हुआ। कोटको चौड़ाई १८१ गज और ऊंचाई कंगूरों तक १७॥ गज: निकली। किलेके बाहरका आग पचास जौबका था। अमीदशाह गौरी जिसका दिलावरखां खिताब था दिल्लीके बादशाह सुलतान फोरोजक बेटे सुलतान मुहम्मदके समय में मालवे का खतन्त्र सूबेदार था। उसने किलेके बाहरको बस्ती में जामा मसजिद बनाई थी जिसके सामने लोहेको एक लाठ गाड़ी थौ । जब सुलतान बहादुर गुजरातीने मालवेको अपने अधीन किया तो इस लाठको गुजरातमें लेजाना चाहा। पर कर्मचारियोंने उखाड़ते समय सावधानी नहीं रखी जिससे जीन पर गिरकर उसके ७॥ गज और ४३ गजके दो टकड़े होगये । वाम सवा गज़की है यह टुकड़े वहां योही पड़े थे इम लिये मैंने हुक्म दिया कि बड़े टुकड़े को आगरेमे लेजाकर खर्गवासी श्रीमानके रौजे में खड़ा करदें और रातको दीपक उस पर जला करे ।[]


इस मसजिदके दी दहलीजें हैं। एकको ऊपर यह लेख खुदा है कि अमोदशाह गौरीने सन् ८७० में यह मसजिद बनाई और दूसरोके ऊपर कवितामें भी यही वर्ष खुदा हुआ है। जब दिलावरखां मरा तो उस समय हिन्दुस्थानमें कोई प्रवल

  1. अब यह लोहेको लाठ अमबर बादशाहके रौजमें नहीं हैं जो आगरे के पास सिकन्दरे में है। उसको दोनों टुकड़े धारभही हैं बड़ा तो अपनी जगहहो पड़ा है और दूसरा एजेण्टको कोठीमें अखड़ा है धारके लोग इसको तेलोको लाठ कहते हैं।