पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/३२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३०९
संवत्१६७४।

तो उसमें में एक छिलकेदार मछली निकाली जो तुरन्त निगली हुई थी। संगमाही तौलमें ६॥ सेरकी और दूसरी २ सेरकी हुई।

गुजरातकी वर्षा।

८ सोमवार (फागुन सुदी १) को बादशाह डेढ़ पाव चार कोस चलकर गांव मोदेके पास ठहरा। लोग गुजरातकी बरसातकी बहुत तारीफ करते थे पिछली रातसे दोपहर दिन तक कुछ मेह बरसा--धूल बैठ गई और बादशाहने यहांकी वर्षा भी देख ली।

मंगलवारको ५॥ कोस कूच होकार जरीसमा गांवके पास डेरे लगे। यहां मानसिंह सेवड़ाके मरनेका समाचार मिला।

मानसिंह सेवड़ा।

बादशाह लिखता है कि सेवड़े हिन्दू नास्तिकों से हैं जो सदैव नंगे सिर और नंगे पांव रहते हैं। उनमें कोई तो सिर और डाढ़ी मूछके बाल उखाड़ते हैं और कोई मुंडाते हैं। सिला हुआ कपड़ा नहीं पहनते। उनके धर्मका मूलमन्त्र यह है कि किसी जीवको दुःख न दिया जावे। बनिये लोम इनको अपना गुरु मानते हैं दण्डवत करते हैं, और पूजते हैं। इन सेवड़ोके दो पन्थ हैं। एक तपा दूसरा करतल (खरतर)। मानसिंह करतलवालों का सरदार था और बालचन्द तपाका। दोनों सदा स्वर्गवासी श्रीमानकी सेवामें रहते थे। जब श्रीमानक स्वर्गारोहण पर खुसरो भागा और मैं उसके पीछे दौड़ा तो उस समय बीकानेरका जमीदार रायसिंह अरटिया जो उक्ता श्रीमानके प्रतापसे अमीरोके पदको पहुंचा था मानसिंहसे मेरे राज्यकी अवधि और दिन दशा पूछ्ता है और वह कलजीभा जो अपनेको ज्योतिषविद्या और मोदन मारण वशीकरणादिमें निपुण कहा करता था उससे कहता है कि इसके राज्यकी अवधि दो वर्षकी है। वह तुच्छ जीव उसकी बात का विश्वास करके बिना छुट्टीही अपने देशको चला गया। फिर जब पवित्र परमात्मा प्रभुने मुझ निज भक्ताको अपनी दयासे सुशोभित किया और मैं विजयी होकर राजधानी आगरे में उपस्थित हुआ तो