सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/३२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३१०
जहांगीरनामा।

लज्जित होकर सिर नीचा किये हुए दरबारमें पाया। शेष वृत्तान्त उसका अपनी जगह पर लिखा जाचुका है। और मानसिंह उन्हीं तोन चार महीने में कोढ़ी होगया। उसके अंग प्रत्यङ्ग गिरने लगे वह अबतक अपना जीवन बीकानेर में ऐप्तौ दुर्दशासे व्यतीत कर रहा था कि जिससे मृत्यु कई अंशों में उत्तम थी। इन दिनों में जो.मुझको उसकी याद आई तो उसके बुलानेका हुक्म दिया उसको दरगाहमें लाते थे पर वह डरके मारे रास्ते ही जहर खाकर नरकगामी होगया।

जब मम भगवद्भताको इच्छा न्याय और नीतिमें लीन हो तो.जी कोई मेरा बुरा लेतेगा वह अपनी इच्छाके अनुसारही फल पावेगा। , सेवड़े हिन्दुस्थानके बहुधा नगरों में रहते हैं। गुजरात देशमें व्यापार और लेनदेनका आधार बमियों पर है इस लिये सेवड़े यहां अधिमतर हैं।

मन्दिरोंके सिवा इनके रहने और तपस्या करनेके लिये स्थान बने हुए हैं जो वास्तवमें दुराचारके आगार हैं। बनिये अपनी स्तिषों और वैटियोंको सेवड़ोंके पास भेजते हैं लज्जा और शील-. बत्ति बिलकुल नहीं है। नाना प्रकारको अनौति और निर्लज्जता इनसे होती है। इस लिये मैंने मेवड़ों के निकालनेका हुक्म देदिया है और मब जगह शाज्ञापत्र भेजे गये हैं कि जहां कहीं सेवड़ा हो मेरे राज्य में निकाल दिया जाये।

कच्छी घोड़ा।

१० बुधवार (फागुन सुदी ४) को दिलावरखांके बेटेने अपने बोपको जागौर पट्टनसे आकर एक सुन्दर कच्छी घोड़ा भेट किया। बादशाह लिखता है शि जबसे मैं गुजरातसे आया हूं ऐसा अंच्छा घोड़ा कोई मनुष्य भेटमें नहीं लागथा एक हजार रुपयेका था।

सेवकों पर आपा।

११ गुरुवार (फागुन सुदी ५) को उसी,तालाबके तट पर प्यान्नों को मजलिस जुड़ी। बादशाहने शुजाअतखां, सफीखां आदि. कई ।