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पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/३२७

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संवत्१६७४।


तिवीको जो इस खूबेक कामों पर निवत थे घोड़े सिरोपात्र और नाश देकर बिदा किया। बाईको मानना भी बढ़ाये गये।

सुतुबुलमुल्जायी वकीलको जो उत्तमो अट लेकर चाया घा तीस हजार दरब मिले।

अनार और बिही।

इसी दिन शाहजहांने बिही और अनार जो कराहन से उसके वास्ते लाये गये थे भेट किये। बादशाह लिखता है कि अवतक इतने बड़े अनार नहीं देखे थे बिही तो तौलमें २८ तोला ८ माशा और अनार ४०॥ तोलेके हुए।

शैखोंको उपहार।

१६ सोमवार (फागुन सुदी) को बादशाहने गुजरातको शैली को जो पहुंचाने आये थे फिर सिरोपाव खर्च और भूमि देवार बिदा किया और हरेकसो एका एका धम्मपुरखका दो निज पुस्तकालयसे दी जिनकी पीठ पर अपने गुजरातमें अाने और पुस्तक देनेशी मिती लिखदी।

बादशाह लिखता है-"इस समय जबतक अहमदाबाद मेरी सवारी उतरजेसे शोभायमान रहा दिन रात मेग यही वाम था कि मुपानीको अपनी आंखोंसे देखकर धन और पृथिवी प्रदान करूं। शैख अहमद सदर (दानाध्यक्ष) और दूसरे बाई मिजाजदां सेवक निबत कर दिये गये थे कि फकीरों और हवादारीको मेरी सेवामें लाते रहें। तोभी शोख मुहमदगौसके बेटों, शैख वजीहद्दीनके पोते और दूसरे मशायख यो यी हुक्ता देदिया था कि उनके जानने में जहां कहीं कोई हकदार हो उसको खिदमतमें हाजिर करें। ऐसही सहलमें काईलियां क्लो काम पर लगाई हुई थीं कि दोन और दरिद्री अबलाओंको मेर- पास लाया करें। क्योंकि यह उद्देश्य संपूर्ण रूपसे था कि जब बहुत वर्षों के पीछे मुझ जैसा बादशाह इस देशको गरीबोंके आग्यसे + खुरासानका एक नगर। -