पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/३३

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नूरजहां बेगम।

मिरजा गयासवेग बापके मरे पीछे दो वेटों और एक लड़की समेत हिन्दुस्थानको रवाना हुआ। कन्धारमें उसके एक लड़की और हुई।

मिरजा गयासबेग फतहपुरमें पहुँचकर अकबर बादशाहकी खिदमतमें रहनेलगा। बादशाहने उसको लायक देखकर बादशाही कारखानोंका दीवान कर दिया। वह बड़ा मुन्शी, हिसाबी और कवि था। फुरसतका वक्त कवितामें बिताता था काम वालोंको खूब राजी रखता था। मगर रिशवत लेने में बड़ा बहादुर था।

जब अकबर बादशाह पञ्जाबमें रहा करता था तो अली कुली- बैग अस्तंजलू जो ईरानके बादशाह दूसरे इसमाईलके पास रहने वालोंमसे था ईरानसे आकर नौकर हुआ और तकदौरस बादशाहने उसकी शादी मिरजा गयासवेगकी उस लड़कीसे करदी जो कन्धार में पैदा हुई थी। फिर अलोकुलीबेग जहांगीर बादशाहके पास जा रहा और शेरअफगनखांके खिताबसे सरफराज हुआ।

जब जहांगीर गद्दी पर बैठा तो उसने मिरजा गयासको एतमा- दुद्दौला खिताब देकर आधे राज्यका दीवान बनाया। और शेर- अफगनखांको बंगालेमें जागीर देकर वहां भेज दिया। उसने बंगाले में जाकर दूसरेही साल वहांके सूबेदार कुतुबुद्दीनखांको मारा और आप भी मारा गया। वहांके कर्मचारियोंने मिरजा गयासको लड़कोको जहांगौरके पास भेज दिया। जहांगौर कुतु- बुद्दीनखांके मारे जानेसे बहुत नाराज था। क्योंकि कुतुबुद्दीनखां उसका धाय भाई था। इससे उसने वह लड़की अपनी सौतेली माता रुकैया सुलतानको देदी। वहां वह कई वर्ष साधारण दशा में रही। जब उसका भाग्य उदय होने पर आया तो एक दिन नौरोजके जशनमें जहांगीरको नजर उस पर पड़ गई और वह पसन्द आगई। बादशाहने उसे अपने महलको लौंडियों में दाखिल कर लिया। फिर तो जल्द जल्द उसका दरजा बढ़ने लगा। पहले नूरमहल नाम हुआ फिर नूरजहां बेगम कहलाई। उसके