पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२४
जहांगीरनामा।

"इस नगर को बस्ती जमुना के दोनो ओर है। पश्चिम को अधिक है। इसका घेरा ७ कोस का है। लम्बाई २ और चौड़ाई कोस है। जो बस्ती पूर्व को नदी के उधर है वह २॥ कोस को है लम्बी १ कोस और चौड़ी आध कोस। पर इतने मे इमारतें इतनी अधिक है कि उनसे ईरान, खुरासान और तुरनाके शहरों के समान कई शहर बस सकते हैं। बहुधा लोगों ने तीन तीन और चार चार खण्डकी मकान बनाये है और आदमियोंकी इतनी अधिक भीड़ रहती है कि गलियों और बाजारों मे मुशकिलाते हो सकते हैं।

"आगरा दूसरी "अकलीन"(१) के अन्त मे है इसके पूर्व में कन्नौज की विलायत पश्चिममें नागौर उत्तर में सन्मल दक्षिण चन्देरी हैं।"

"हिन्दुओं की किताबों में लिखा है कि यमुना का सोता क्लन्द नाम का एक पहाड़ है जहां ठंड अधिक होने के कारण मानव नहीं जा सकते हैं। और जहां यमुना प्रकट होती है वह एक पहाड़ परगने खिजराबादी पान है।"

"आगरेकी हवा गर्म और खुश्क है। हकीम कहते हैं कि वह जान्दारों को बुलाती और निर्वल करती है। वहुधा लोग उसे सह नहीं सकते। परन्तु जिनकी प्रज्ञति कफ और वायु की होती हैं वह इसके अवगुणसे बचे रहते हैं। यही कारण है कि जिन पशुओं को ऐसी प्रजाति है जैसे कि भैंस और हाथी आदि यह इल जलवायु में अच्छे रहते हैं।

"लोदी पठानों के राज्य से पहले आगरा बड़ा नगर था किला भी था "मसऊदसाद" सुलेखानने सुलतान महमूद गजनवीके पड़- पोते मसऊदसाके पोते इब्राहीम ने बेटे महमूद को प्रशंसा के कसौदे


(१) सुमलमान भूगोलवेत्तात्रोंने पृथ्वीं के ७ खण्ड ठहराकर हिन्दुस्थान को दूसरे तीसरे और चौथि खण्ड में माना है यह ७ खण्ड ८ लबी रेखाओं के भीतर जो पूर्व से पश्चिम के भूमि को नकशे मे दिखाई जाती है ठहराये गये हैं।