जहांगीरनामा। . . ५ , कोकवसफेद जहांगौरी सुलतानी ....... । निसारौ - , तोलेका १०वां भाग खैरकबूल इन सिक्कों पर बादशाहका नाम, मुसलमानो कलमा, सन् जुलूम और टकसालका स्थान छापा जाता था। नूरजहांनी मोहर सौ जगह चलता था और जहांगीरी रुपयको जगह । बादशाहको उदारता और न्यायनीति । ___ बादशाहने एक लाख रुपये खुसरोको देकर फरमाया कि जिलेके बाहर जो मुनइमखां खानखानांका मकान है उसको अपने वास्ते सुधरा लो। ___पंजाबको सूबेदारी सईदखां मुगलको दी पर उसके नाजिरीका अन्यायी होना सुनकर कहला दिया कि हमारी न्यायशीलता किसी ते अनाचारका सहन नहीं करती है जो उप्तके अनुचरोंसे किसी पर अन्याय हुआ तो अप्रसन्नताका दण्ड दिया जायगा। ___ फरीद बखशीको मौरबखशौके पदपर स्थिर रखा और सिरोपाव वे सिवा जड़ाऊ दवात कलम और जड़ाऊ तलवार भी उसको दी और उसका मन बढ़ानेको कहा कि मैं तुमको तलवार और कलम का धनी (सिपाही और मुंशो) जानता हूं। वजीरयों जो वजीर था और फतहंउन्नह जो बखशी था वह दोनो अब भी उन्हीं कामों पर रहें। . अबदुलरज्जाक मामूरी जो बिना कारणही बादशाहके पाससे उसके बापको सेवामें भाग आया था बादशाहने उसका अपराध । क्षमा करके बखशौके पद पर बना रेखा और खिलअत दिया। ___ अमीनुद्दौला जो जहांगीरका बखशी था और फिर बिना आज्ञा उनके पिताके पास आकर तोपखानेका अध्यक्ष होगया था। उसी काम पर बना रखा गया। इसी तरह जो लोग बाहर और भौतर
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