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पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/५८

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जहांगीरनामा।

के पास मर गया जो बरार देशमें है। उसका वर्ण, सांवला था बदन छरेरा कद लम्वा चालढालसे धीरता वीरता और गम्भीरता पाई जाती थी।"

"तारीख १० जमादिउलअब्बल सन् ९७९(१) वुधकी रातको फिर एक लड़का एक सहेलीसे अजमेर में दानियाल सुजावरके घर पक्ष हुआ। पिताने उसका दानियाल नाम रखा और शाह मुराद के मरने पर दक्षिणको भेजा। पीछे आप भी गये। जिन दिनों में आपने आसेरगढ़को घेरा था दानियाल खानखानां और मिरजा युसूफ आदि सरदारों सहित अहमदनगरके किलेको घेरे हुए था। जब आसेरगढ़ फतह होगया, पिता दानियालको वहां छोड़कर आगरे में आगये फिर वह भी अपने भाई शाह मुरादका अनुगामी होकर अधिक शराब पीनेसे ३३ वर्षको अवस्थामें मर गया। उसकी मृत्यु बुरी तरह हुई। उसको बन्दूक और बन्दूकको शिकारसे बहुत रुचि थी। अपनी बंदूकका नाम 'इक्का' और 'जनाजा' बखा था। जब शराब बहुत बढ़ गई और खानखानांने मेरे पिता को ताकीदसे पहरे बिठाकर शराबका आना बन्द कर दिया तो दानियालने अपने सेवकोंसे बहुत नम्रतासे कहा कि जैसे बन पड़े मेरे वास्ते शराब लाओ। और निज सेवक सुरशिदकुलीसे कहा कि इसौ बंदूक इक्का और जनाजामें भर ला। वह दुष्ट इनामके लोभसे दोआतिशा शराब उस बंदूकमें भरकर लेअाया। उसकी तेजीसे बारूत और लोहा कटकर उसमें मिल गया फिर उसका पीना और मरना साथ साथ था।"

"दानियाल बहुत सजीला जवान था। उसे हाथी घोड़ोंका बहुत शौक था। यह असम्भव था कि किसीके पास अच्छा हाथी


(१) अकबरनामेमें बुध, २ जमादिउलअव्वल ९८० है और यही सही है बुध भी इसी तारीखको था। १० जमादिउलअव्वल और तिथि आसोज सुदी ३ सम्वत् १६२९ थी १० जमादिउलअब्बल ९७९ को बुध नहीं रविवार था।