पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४८
जहांगीरनामा।

बाईं और बीचको सेनाके शूरबीर भी पहुंचकर शत्रुसे लड़ने लगे। शत्रुकी सेनासे कौकबाई जो एक प्रकारका अग्न्यास्त्र होता है छुटा और थूहरोंके वृक्षोंमें पड़कर चकर खाने लगा। उसको कड़कसे गनीमका हाथी भड़ककर अपने लशकरमें जापड़ा जिससे वहां बड़ी गड़बड़ मची और बीचको फौजने बढ़कर मुहम्मदहुसैन मिरजा और उसके सिपाहियोंको हटा दिया । शूरबीरों ने खूब युद्ध किया। मानसिंह दरबारीने हजरतके देखते देखते अपने शत्रुको मारलिया। राघोदास कछवाहा काम आ या मुहम्मद वफा जखमी होकर घोड़े से गिरा। ईखरको कृपा और भाग्यवलसे शत्रु हार गये। आप इस विजयपर ईश्वरका धन्यवाद कररहे थे कि एक कलावन्तने सैफ खां कोकलताशके मारे जानेको खबर दी। निर्णय करनेसे विदित हुआ कि जब मिरजा गोल (बीच) की फौज पर दौड़ा था तो सैफ खां दैवसंयोगसे उसके सामने आगया और बीरतापूर्वक लड़कर काम आया। मिरजा भी गोलवालोंके हाथों घायल हुआ।"

"सैफखां जैनखां कोकाका बड़ा आई था और विचित्र बार्ता यह है कि लड़ाईसे एक दिन पहले जब बादशाह भोजन कररहे थे तो हजारेसे जो शानेको हड्डी देख जानता था पूछने लगे कहो किसकी जीत होगी? उसने कहा कि जीत तो आपकी होगी परन्तु एक अमीर इस लशकरका शहीद होगा। सैफखांने निवेदन किया कि यह सौभाग्य मुझे प्राप्त होना चाहिये।

"जब मिरजा मुहम्मद हुसैन भागा तो घोड़ेका पांव थूहरमें फंस जानेसे गिर पड़ा। उसी समय गदाअली इक्का वहां पहुंचा और उसे अपने आगे घोड़े पर बैठाकर हजूर में लाया। उस समय दो तीन आदमी और भी उसके पकड़ने में शामिल होनेकी बात कहने लगे। आपने मिरजासे पूछा तुम किसने पकड़ा ? उसने कहा "बादशाहके नमकने ।" उसके हाथ पीछेको बंधे थे आपने धागे की ओर थांधनेको फरमाया। फिर उसने पानी मांगा तो फरहत खां गुलामने उसके सिर पर दुहत्थड़ मारा। आपने उससे नाराज