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जहांगीर बादशाह सं० १६६२।

और मस्तीके समय उनसे मद चूता था। उसका माथा भी उभरा हुआ था।

काबुलकी जकात।

बादशाहने और सब मूबोंकी जकात जो करोड़ोंकी थी पहले ही छोड़ दी थी अब काबुलको जकात भी जिसको जमा एक करोड़ २३ लाख दामकी थी माफ कर दी और कन्धारकी भी माफ की।

काबुल और कन्धारकी बड़ी आमदनी यही थी इस माफीसे ईरान और तूरानके लोगोंको बहुत लाभ हुआ।

रुकैया बेगम।

शाहकुलीखां महरमका बाग आगरेमें था परन्तु उसका कोई वारिस नहीं रहा था। इसलिये बादशाहने अपनी सौतेली माता मिरजा हिन्दालकी बेटी स्कैया वेगमको देदिया। अकबर बादशाह ने सुलतान खुर्रमको इसे सौंपा था और वह पटक बेटेसे अधिक खुर्रम पर स्नेह रखती थीं।

पहला नौरोज।

११ जीकाद सन १०१४ हिजरी (चैत सुदी १२) मंगलवारकी रातको सूर्य्यनारायण मेखमें आये। दूसरे रोज नौरोज हुआ । उस दिन मेष राशिके १९ वें अंग तक खूब राग रंग और नाच कूद हुआ। क्योंकि यह पहला नौरोज था। बादशाहने आज्ञा दे दी थी कि इन दिनों में हर आदमी जो नशा चाहे कर कोई न रोके ।

बादशाह लिखता है--इन १७।१८ दिनोंमें हर रोज एक बड़ा अमीर मेरे पिताको अपनी मजलिसमें बुलाकर रत्न और रत्नों जड़े हुए गहने तथा हथियार और हाथी घोड़े भेट किया करता था जिनमेंसे वह कुछ तो पसन्द करके लेलेते थे और शेष उसीको बख्श देते थे।

परन्तु मैंने इस वर्ष सिपाही और प्रजाके हितसे यह भेटें नहीं ली। हां कई पास रहनेवालोंको भेंट ग्रहण की।