पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/७४

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जहांगीरनामा।

जहांगीर लिखता है--"मेरे पिताने इन विचारों में निपुणता प्राप्त की थी और इन विचारों से वह कभी खाली न रहते थे।

२४ मंगल (बैशाख बदी ११) को ५ आदमी खुसरोके साथियों मेंसे पकड़े आये। उनमेंसे दोने खुसरोके पास नौकर होना स्वीकार किया था वह हाथीके पांवके नीचे कुचलवाये गये और तीनने इन कार किया था वह निर्णय होने तक हवालातमें रखे गये।

दिलावरखांने १२ फरवरदीन (२२ जीकाद चैत्र बदौ ,९) को लाहोर पहुंचकर किला सजाया था। फिर खुसरो भी पहुँचा और कहा कि एक दरवाजेके किवाड़ोंको जलाकर गढ़में प्रवेश करें। गढ़ जीते पीछे ७ दिन तक नगर लूटनेको आज्ञा दूंगा उसके साथियोंने एक दरवाजेके किवाड़ जलाये परन्तु भीतरवालोंने आड़ी भीत उठा कर रास्ता रोक दिया।

घेरेके ९ दिन पीछे बादशाही लशकरकी अवाई सुनी तो खुसरोने छापा मारनेके विचारसे नगरको छोड़ दिया ६|७ दिनोंमें १०|१२ हजार सवार उसके पास इकट्ठे होगये थे।

२६(१) (बैशाख नदी १३) गुरुवारको गतको खुसरोके आनेको खबर सुनकर बादशाह मेह बरसतेमें सवार हुआ। सवेरे सुलतान- पुरमें पहुंचकर दोपहर तक वहां रहे। उस समय दोनों ओरकी सेनाओं में संग्राम मचा। मुअज्जु लमुल्क एक रकाबी बिरयानी(२) की बादशाहके वास्ते लाया था। परन्तु लड़ाईके समाचार सुनतेही बादशाह कचि होने पर भी केवल एक ग्रास उसमेंसे शुकनके तौर पर खाकर सवार होगये । उसने अपना चिलता(३) बहुत मांगा पर किसीने लाकर न दिया। बरछे और तलवारके सिवा कोई हथि- यार भी पास न था। सवार भी ५० से अधिक चलनेके समय न


(१) मूलमें भूलसे १६ लिखी है।
(२) एक प्रकारका भोजन।
(३) झिलम कवच।