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जहांगीर बादशाह संवत् १६६३ ।

थे। क्योंकि कोई नहीं जानता था कि आज लड़ाई होगी। बादशाह ईश्वरके मरोसे उसो सामान और सेनासे चल पड़े। गोवि- न्दवालके पुल पर पहुंचे तबतक चार पांचसौ सवार अच्छे बुरे आ मिले थे। पर पुलसे उतरतेही शमसी तोशकची फतहको बधाई लाया और उसने खुशखबरखांकी पदवी प्राप्त की। इस पर भी मीर जमालुद्दीनहुसैनने जो खुसरोको समझानेके लिये भेजा गया था खुसरोके पास बहुतसी फौज होने का वर्णन ऐसी धूमधामसे किया कि लोग डरने लगे। जीत होनेके समाचार लगातार चले आते थे तो भी वह सीधा सादा सैयद यही कहे जाता था कि जिस धड़ल्ले का लशकर मैं देख आया हूं शैख फरीदकी थोडीसी सेनासे वह क्योंकर हारा होगा?

निदान जब खुसरोका सिंहासन उसके दो नाजिरों सहित लाया गया तो सैयद घोड़ेसे उतरकर बादशाहके पैरोंमें गिर पड़ा और कहने लगा कि भाग्य इससे बढ़कर नहीं होसकता !

लड़ाईका वृत्तान्त।

बारहके सैयद बड़े वीर थे और युद्ध में सबसे बढ़ चढ़कर काम करते थे। शैख फरीद बखशीने उन्हींको हिरावल बनाकर सेनाके आगे भेजा था। उनके सरदार सैयद महमूदके बेटे सैफखांने सतरह घाव खाये थे। सैयद जलाल माथे पर तीर खाकर कुछ दिन पीछे मरा था। सैयद कमालने वीर साथियों सहित बड़ी बहादुरी दिखाई। जब दहनी अनीके सिपाही बादशाह सलामत बादशाह सलामत कहते शत्रुओं पर दौड़े तो उनके छक्के छूटगये। भागतेही बनी ४०० के लगभग मारे गये और घायल हुए खुसरोके रात्रोका सन्दूक जिसे वह सदा अपने पास रखता था लूटमें उसके हाथ आया।

बादशाह लिखता है--कौन जानता था कि यह छोटी उमरका बालक मेरा भय और लज्जा छोड़कर ऐसा कुकर्म करेगा। ओंछे आदमी इलाहाबाद में मुझे भी बापसे लड़नेसे लिये उभारते थे।