पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६०
जहांगीरनामा।

पर यह बात कभी मुझको स्वीकार न हुई । मैं जानता था कि वह राज्य जिसका आधार पिताकी शत्रुता पर हो स्थिर न होगा। अतएव मैं उन कुवुद्धि लोगोंके कहनेसे नष्ट न हुआ। अपनी समझ की प्रेरणा पिताको सेवामें पहुंचा जो गुरू तीर्थ और ईश्वर थे । फिर जो कुछ मुझे मिला वह उसी इच्छाका फल है।

खुसरोका पीछा।

जिस रात खुसरो भागा था बादशाहने उसी रात पञ्जाबके एक बड़े जमीन्दार राजा बात्तूको हुक्म दिया कि अपने देश में जाकर उसे जहां पावे पकड़नेकी चेष्टा करे।

इनायतखां और मिरजाअली अकबरशाही बहुतसी सेनाके साथ खुसरोके पीछे भेजे गये। बादशाहने यह प्रतिज्ञा की कि जो खुसरो काबुलको जावे तो जबतक पकड़ा न जावे लौटके न आवें। यदि काबुलमें न ठहरे और बदखशांको चला जावे तो महाबतखां को कावुल में छोड़ आवें। बादशाहको भय था कि बदखशां जाकर वह उजबकोंसे मिल जावेगा तो अपने राज्यको बात हलकी होगी।

२८ (बैशाख बदी ३०) शनिवारको जैपालके पड़ाव पर जो लाहोरमे ७ कोस है बादशाहको तम्बू लगे। खुसरो जब चिनाब नदीके तट पर पहुंचा तो पठानो और हिन्दुस्थानियोंने उसको हिन्दुस्थानकी तरफ लौटनेको सम्मति दी और हुसैनवेग बदखशीने काबुल जाने पर पक्का किया। पीछे पठान और हिन्दुस्थानी तो उसको छोड़ गये और वह रात्रिमें लोधरे घाटसे चिनाब नदीके पार होने लगा। मगर चौधरीके जमाई केलणने खबर पाकर खेवटियोंसे कहा जहांगीर बादशाहका हुक्म नहीं है कि रातको बिना जाने पहिचाने कोई नदीसे उतर सके। यह गड़बड़ सुनकर खेवरिये तो भाग गये और इधर उधरके आदमी आधमके। हुसैन बेगने पहिले तो रूपयेका लालच दिया फिर तीर मारना आरम्भ किया केलण भी इधरसे तीर चलाने लगा। नाव ४ कोस तक बिना खेवटियोंके चलकर रेतमें अड़ गई आगे नहीं चली। बादशाहका