(ग) लखनऊके अवधअखबार में रियासतको ओरसे विज्ञापन प्रकाशित हुश्रा कि अब पिछली बातें रियासतमें नहीं होने पावेंगी। मुंशीजीके छोटेभाई बाबू विहारीलाल जोधपुरको एजण्टीमें सेकेण्ड क्लार्क थे। उनकी चेष्टासे पापको एक नौकरी संवत् १८३६ में जोधपुर दरबार में मिली। पहले कई साल तक आप अपोलकोर्टके नायब सरिश्तेदार रहे। संवत् १८४० में महकमे खासके सर- दफ्तर होगये। १८४२ में आप मुंसिफ हुए। १८४६ में महकमें तवारीखके मेस्बर हुए। संवत् १८४८ में मनुष्यगणनाके डिपटी सुपरिटेण्ड ण्ट और १९५५ में महकमे बाकियात और खासी दुकानातके सुपरिण्टे ण्ड ण्ट हुए। अढ़ाई सौ रुपये मासिक तक बेतन पाते रहे। संवत् १८५६ के अकालमें रियासतको मुन्सिफी टूट गई तब आपने कुछ दिन तक फेमिन विभागमें काम किया। संवत् १९५७ में फिर जोधपुर परगने में मनुष्यगणनाके सुपरिण्ट - ण्ड ण्ट हुए। आजकल रियासतके बड़े काम छोडकर गुजारके लायक कुछ काम आपने अपने पास रखे हैं और साहित्यसेवामें लगे हैं। दुनिया में धन जोड़नेको इच्छा अधिक लोगोंको रहती - है पर धन अमर, नहीं हैं। : मुंशी साहब इस समय वह धन जोड़ रहे है जो..सदा अमर रहे।..... .. ...अङ्गारेजी में छपी हुई मुंशी देवीप्रसादजीको मार्टीफिकटीको एक पुस्तक मेरे दृष्टिगोचर हुई। उसके देखनेसे विदित होता है. कि वह जिस विभागमें गये हैं उसी में उनके कामको इज्जत और उनकी सेवाको सराहना हुई है। नौकरके लिये यही बड़ी इज्जत है. कि उसके कामको प्रशंसा हो: . पर जिनके दृष्टि है उनको समझमें आजाता है कि मुंशी देवीप्रसाद मामूली काम करनेवालोंके सदृश नहीं थे। उनको प्रतिभाने हर जगह अपना. चमत्कार दिखाया है। इतिहासके समझने पढ़ने और पुरानी बातोंको खोज खोज कर निकालनेको जो बुद्धि भगवानने उनको दी है उसने हर जगह अपनी तेजी दिखाई है। मनुष्यगणनामें जाकर आपने जोधपुर
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