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पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/९६

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जहांगीरनामा।

इस स्थानको हथिया भी कहते हैं क्योंकि हाथी नाम एक गक्खड़ का बसाया हुआ है और देशका नाम मारकल्लासे हथिया तक पून्हहार है। इधर कव्वे बहुत कम होते हैं। रुहताससे हथियो तक "भोकयाल" लोग रहते हैं जो गक्खडोंके भाई बन्द हैं।

७ मुहर्रम (बैशाख सुदी ८) शुक्रवारको सवा चार कोस चलकर पक्के में डेरा लगा। यहां एक सराय पक्की ईटोंकी बनी हुई थी इसलिये पक्का नाम हुआ। इम रस्ते में धूल बहुत उड़ती थी गाड़ियां बड़ी कठिनतासे मंजिल पर पहुंची।

८ मुहर्रम (बैशाख सुदी ९) शनिवारको साढ़े चार कोस चल कर कोरमें मुकाम हुआ। इधर वृक्ष बहुत कम थे। कोर गक्खड़ों को बोलीमें दरेको कहते हैं।

९ (बैशाख सुदी १०) रविवारको रावलपिण्डीमें मंजिल थी। यह गांव रावल नामक एक हिन्दूने बसाया था पिण्डी गांवको कहते हैं। इसके पास घाटीमें पानी बहता था और एक झालरेमें इकट्ठा होता था। बादशाहने उस जगह कुछ देर ठहर कर गक्खड़ों से पूछा कि यह पानी कितना गहरा है ? उन्होंने कहा कि इसमें एक मगर रहता है जो कोई जानवर या आदमी पानीमें जाता है वह घायल होकर निकलता है। बादशाहने पहिले एक बकरी डलवाई वह सारे तालाबमें तैरकर आगई। फिर एक फर्राशको हुक्म दिया, वह भी उसी तरह तैरकर साफ निकल आया। गक्खड़ों की बात सही न निकली।

१० (बैशाख सुदी ११) चन्द्रवारको गांव खरबूजेमें मुकाम हुआ यहां गक्खड़ोंने पिछले समयमें एक बुर्ज बनाया था और मुसाफिरों से कर लिया करते थे। उस बुर्जका आकार खरबूजेकासा था इसलिये यह नाम प्रसिद्ध होगया।

११ मंगल (बैशाख सुदी १२) को बादशाह कालापानीमें उतरे यहां एक घाटी मारकल्ला नाम है। कल्ला काफिलेको कहते हैं इस घाटीमें काफिले मारे जाते थे इस कारण ऐसा नाम हुआ।