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जहांगीर बादशाह सं० १६६४।

लगाकर एक किला बनाया था। उसका नाम नया शहर रखा था हुमायूं और अकबर बादशाह यहां भड़ियोंका शिकार खेला करते थे।

२५ (जेठ बदी १२) मंगलवार(१) को दौलताबादकी सरायमें डेरे हुए। यहां परशावर (पिशौर) का जागीरदार अहमदबेग यूसुफा- जई और गोरियाखैलके मलिकों (चौधरियों)को लेकर आया। उससे इस जिलेका बन्दोबस्त बादशाहको मरजीके मुवाफिक नहीं हुआ था इसलिये बादशाहने उसका काम छीनकर शेरखां अफगानको दिया।

२६ (जेठ बदी १३) बुधवारको परशावरके पास सरदारखांके बागसे डरे हुए। यहां इस प्रान्तके जोगियोंका प्रसिद्ध तीर्थ गोरख खड़ी था बादशाह इस विचारले कि कोई जोगी मिले तो उसके सतसङ्गसे लाभ उठावे वहां गया परन्तु कोई न मिला।

२७ (जेठ बदी १४) गुरुवारको जमरोदमें और शुक्रको खैबर- घाटेके पार अलीम सजिदमें और शनिको मारपेच घाटीसे उतरकर गरीबखानेमें बादशाहको मुकाम हुए। यहां जलालाबादका जागी- रदार कासमतगीन जर्दालू लाया। बादशाह लिखता है--कशमीर के जर्दालूसे अच्छे नहीं थे।" काबुलसे "केलास" भी आये जिनका नाम अकबर बादशाहने शाहआलू रख दिया था। क्योंकि केलास नाम छिपकलीका था।

२ सफर (जेठ सुदी ४) मंगलवारको पसावलके मैदानमें नदीके तट पर डर हुए। नदीसे उधर एक पहाड़ था जिसको हरयाली और वृक्ष नहीं होने से "कोहेबेदौलत" कहते थे बादशाह लिखता है कि मैंने अपने बापसे सुना है कि ऐसे पहाड़ों में सोनेकी खानें होती हैं।

आसिफखांका वजीर होना।

३ सफर (जेठ सुदी ५) बुधवारको बादशाहने अमीरुलउमराकी बीमारी बढ़ जानसे जिसे जिले लाहोरमें छोड़ आया था आसिफखां


(१) मूलमें भूलसे गुरुवार लिखा है।