बादशाहके सभासद थे मरनेके पीछे उसी बादशाहकी आज्ञासे यहां गाड़े गये।
१५ (जेठ बदी १) को अमरोहीमें मुकाम हुआ। अजब हरा भरा स्थान था। यहां ७|८ सहस्र घर "खर" और दिलाजाक जातिके रहते थे और भांति भांतिका अनाचार और लूट मार करते थे इसलिये बादशाहने वह प्रांत और अटककी सरकार जैनखां कोका के बेटे जफरखांको सौंपकर हुक्म दिया कि हमारे लौटने तक तमाम दिलाजाकोंको यहांसे उठाकर लाहोरकी तरफ चलता करें और खरों के मुखियों को पकड़कर कैद रखें।
१७ (जेठ बदी ३) सोमवारको कूच हुआ। बादशाह एक मंजिल बीचमें रहकर नीलाबके किनारे किलें अटकमें पहुंचा। यह सुदृढ़ दुर्ग अकबर बादशाहका बनाया हुआ है। अटक पर १८ नावोंका पुल बांधा गया था परन्तु काबुलमें इतने लशकरकी समाई न देख कर बादशाहने बखशियोंको हुक्म दिया कि पास रहनेवालोंके सिवा और किसीको अटकसे न उतरने दें लशकर अटकके किले में रहे।
१९ (जेठ बदी ५) बुधवारको बादशाह शाहजादों और निज सेवकों सहित जाले पर सवार होकर नीलाबसे उतरा और कामा नदीके किनारे ठहरा। उसका पानी जलालाबादके आगे बहता है।
जाला एक प्रकारकी नाव है। जो घांस और बांसोंसे बनाई जाती है और उसके नीचे मशकें हवासे भरकर बांध दीजाती हैं उस तरफ उसको शाल कहते थे। जिन नदियोंको तहमें पत्थर रहते हैं उनमें यह बड़ी काम आती थी।
अबदुलरज्जाक मामूरी और अहदियोंके बखशी विहारीदासको हुक्म हुआ कि जिन लोगोंकी जफरखांके साथ जानेको कहा गया है वह तय्यार कारके भेजे जावें।
बादशाह फिर एक मंजिल बीच में देकर बाड़ेमें पहुंचा, सरायमें ठहरा। यहां कामा नदीके उस पार जैनखां कोकाने जब वह यूसूफजई पठानोंको दण्ड देनेके वास्ते इधर आया था पचास हजार रुपये