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जात-पाँत की एक रोमाञ्च-जनक कथा

मैं अपने धर्म से प्रीति रखता हूं अतः मैं इस पर अभी तक दृढ हूं अन्यथा केाई मनुष्य इस बात को पसन्द न करेगा कि ऐसे धर्म में रहे जो अपने निरपराध अनुयायियों को दण्ड देता है।

मैंने अपनी कन्या का विवाह एक ऊंची जाति के ब्राह्मण से किया है, मैंने हिन्दूधर्म वरन् ब्राह्मणों की जाति के पास भी जाना पसन्द नहीं किया परन्तु उपरोक्त प्रस्ताव के अनु- सार मैं बिरादरी से निकाल दिया गया हूं और मेरी यह अवस्था है कि नैतिक दृष्टि से मैं हिन्दुओं के साथ मेल जोल नहीं रख सकता, अब मैं और मेरा परिवार न किसी मनुष्य के साथ संबंध कर सकते हैं और न खाना खा सकते हैं। वही हिन्दुधर्म जिससे मैं इतना प्रेम रखता है मेरे लिये तंग होगया है, और मुझे पग २ पर ठुकरा रहा है, यह सत्य बात है कि यदि मैं इस्लाम को स्वीकार करलू तो मेरे लिये कोई नैतिक व धार्मिक रुकावट ऐसी न होगी जिसके कारण से मैं बड़े से बड़े मुसल्मान, यहांतक कि सर अब्दुरहीम के साथ भी सम्बन्ध न कर सकें.........मैं चाहूं तो मुस्तफा कमालपाशा के साथ भोजन भी कर सकता हूं। परन्तु अब हिन्दू धर्म किसी जगह मुझे अपनी गोद में नहीं ले सकता, मैं अपनी कन्याओं का मुंह नहीं देख सकता और उनसे मिल जुल नहीं सकता, यह बिल्कुल कोरे तथ्य हैं। मैं पं० माल-