पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४९
मेरा आदर्श-समाज


अर्थ समाज की वह अवस्था है, जिस में कुछ लोगों को अपने आचरण की दूसरों को इच्छा के अनुसार ढालना पड़ता है।

क्या समता पर कोई आपत्ति हो सकती है ? यह स्पष्टतः। फ्रान्सीसी राज्य-क्रान्ति के रणनाद का सब से अधिक विवादास्पद भाग रहा है । समता पर निर्दोष आपत्तियाँ हो सकती हैं। हमें मानना पड़ता है कि सब मनुष्य बराबर नहीं । परन्तु तब क्या हुआ ? हो सकता है कि समता एक अलीक वस्तु हो, परन्तु तो भी हमें इस को एक सञ्चालक सिद्धान्त के रूप में स्वीकार करना ही पड़ेगा । मनुष्य की शक्ति तीन बातों पर आश्रित है-(१) शारीरिक वंश-परम्परा, (२) सामाजिक उत्तराधिाकर या माता-पिता द्वारा चिन्ता, शिक्षा, वैज्ञानिक ज्ञान के सश्चय के रूप में और उस प्रत्येक बात के रूप में दान, जो उसे जङ्गली मनुष्य से अधिक योग्य और समर्थ बनाती है. और अन्ततः (३) उस के अपने प्रयत्न । इन तीनों बातों की दृष्टि से मनुष्य निस्सन्देह असमान हैं। परन्तु प्रश्न यह है कि क्या उन के असमान होने के कारण हम उन के साथ असमानता का व्यवहार करें ? यह एक ऐसा प्रश्न है, जिस का उत्तर देना समता के विरोधियों के लिए आवश्यक हैं। व्यक्तिवादी के दृष्टिकोण से, मनुष्यों के साथ, जहाँ तक उन के उद्योग असमान हैं, असमानता का व्यवहार करना न्यायसङ्गत हो सकता है। प्रत्येक व्यक्ति की शक्ति के पूर्ण विकास को यथा सम्भव अधिक से अधिक उत्तेजन देना वाञ्छ- नीय हो सकता है। परन्तु यदि मनुष्यों के साथ पहली दो बातों में, जिन में वे असमान हैं, असमता का व्यवहार किया जायगा, तो उस का परिणाम क्या होगा ? यह स्पष्ट है कि जिन व्यक्तियों के पक्ष में जन्म, शिक्षा, पारिवारिक ख्याति,