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जाति-भेद क्यों नहीं मिटता


के साथ बँधा हुआ है; यह बौद्धिक श्रेणी ब्राह्मण जाति के हितों तथा आकांक्षाओं में भाग लेती है; और यह अपने को देश के हितों का नहीं वरन् उस जाति के ही हितों की रक्षक समझती है। यह सब बहुत ही शोचनीय बातें हो सकती हैं। परन्तु यह सचाई बराबर बनी रहती है कि ब्राह्मण हिन्दुओं की बौद्धिक श्रेणी हैं । यह केवल बौद्धिक श्रेणी ही नहीं वरन् यह एक ऐसी श्रेणी है जिसे बाकी हिन्दू बड़े सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। हिन्दुओं को सिखाया जाता है कि ब्राह्मण भूदेव ( पृथ्वी के देवता ) हैं। हिन्दुओं को सिखाया गता है कि केवल ब्राह्मण ही तुम्हारे गुरु हो सकते हैं-वर्णानां ब्राह्मणो गुरुः ।

मनु कहता है-

अनाम्नातेषु धर्मेषु कथं स्यादिति चेद्भवेत्;
यं शिष्टा ब्राह्मणा त्रू युः स धर्मः स्यादशङ्कितः ।

अर्थात् धर्म को जिन बातों का विशेष रूप से वर्णन नहीं यदि उन के विषय में पूछा जाय, तो उत्तर यह होना चाहिए कि ब्राह्मण जो कि श्रे शिष्ट हैं, जिस का प्रतिपादन करें, निस्सन्देह वही कानून या धर्म है ।

जब ऐसी बौद्धिक श्रेणी जो बाकी समाज को अपनी मुट्ठी में किए हुए है, जाति-भेद के सुधार के विरुद्ध हो तो जाति-भेद को तोड़ने के लिए खड़े किए गये आन्दोलन की सफलता के संयोग मुझे बहुत ही कम दिखाई देते हैं।

जाति भेद के टूटने में दूसरी रुकावट यह है कि जाति-भेद के दो रूप हैं। अपने एक रूप में यह मनुष्यों को अलग अलग बिरादरियों में बाँटता है। अपने दूसरे रूप में इसने इन बिरादरियों को सामाजिक स्थिति में एक दूसरे के ऊपर क्रमबद्ध शृङ्खला में