पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(१२)


आप पूछते हैं जाति-पाँति-तोड़क विवाह की संतान की जाति क्या होगी? हमारा उत्तर है जो परशुराम और वशिष्ठ की थी और जो व्यास और कौरव-पांडवों के पूर्वजों की थी, क्योंकि ये सब भी जाति-पाँति-तोड़क विवाहों ही की संतान थे। हम कहते हैं जाति की ज़रूरत क्या है? सम्राट् जार्ज की क्या जाति है? अँगरेज़ों के यहाँ जाति-पाँति नहीं, तो क्या उनका काम अटका हुआ है? आप ख़ुद ही मानते हैं कि त्रेतायुग में जाति-पाँति-तोड़क विवाहों का ख़ूब प्रचार था। पीछे से याज्ञवल्क्य ने अपनी स्मृति में इनका निषेध कर दिया। भाई, याज्ञवल्क्य ने निषेध कर दिया, तो अब हम फिर एक नई स्मृति—क़ानून—बनाकर उसका विधान कर देते हैं। त्रेता में कलियुग से तो अधिक धर्म था। फिर उस युग के धर्मी लोगों का अनुकरण करना अच्छा है या आप-ऐसे कलियुगी लोगों की हाय-तौबा को सुनना?

आक्षेप—जाति-बँधन को खंड-खंड कर डालना आप ऐसा अवस्थाओं में विवाह को हिंदू विवाह कहना हिंदू-समाज, और उसके प्यारे धार्मिक तथा सामाजिक विश्वासों मशा रिवाजों का घोर अपमान करना।

उत्तर—कौन—से हिन्दू—समाज का? आर्यसमाजी, ब्राह्मसमाजी, देव समाजी, राधास्वामी, सिक्ख, जैन, प्रार्थना—ममाजा? ये हिंदू हैं या नहीं? ये सब और समझदार अछूतों तथा शूद्रों का अधिकांश जाति-पाँति का कट्टर विरोधी है, चाहे वे आप-ऐसे धर्म के ठेकेदारों के फैलाए जाल में फंसे होने के कारण अभी इस माया-जाल को तोड़ने में सफल न हुए हों।

आक्षेप—जाति-पाँति-तोड़के विवाहो से और बहुत-सी नई जातियाँ बन आयेंगी। प्रतिलोम-विवाह अर्थात् छोटी जाति से पुरुष का ऊंची जाति की स्त्री के साथ विवाह हिंदुओं में पुरातन काल में