पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/९३

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सहन नहीं किया जाता था। इसलिये उनकी संतान को चांडाल-जैसा अत्यंत बुरा नाम दिया जाता था। योरपीय समाज में भी एक उच्च कुल की कन्या का छोटे कुल के पुरुष के साथ विवाह लड़का के परिवार के लिये बड़ा भारी अपयश और उसके अपने लिये भारी पतन समझा जाता है। हिंदू-समाज महादेव के पतन को तो शायद सहन कर ले पर पार्वती का पतन कभी सहन नहीं कर सकता। इससे उनके खोख की पवित्रता और पतीस्थ का आदर्श बहुत नीचा हो जायगा। हिंदू-आदर्श अपनी भार्या के सिवा शेष सब स्त्रियों को अपनी माता समझने का आदेश करता है। इसी दिव्य भावना के कारण हिंदू का अपने देवताओं के साथ संबंध है और वह स्त्री-जाति को "देवी" नाम से पुकारता है। सो यहाँ रिवाज का ही प्रश्न नहीं, बल्कि एक बहुत प्रिय आदर्श का भी सवाल है, क्योंकि इस आदेश को नीचा कर देने से समाज के नैतिक भाव की घोर हानि होगी। हिंदू-समाज और हिंदू-शास्त्र प्रतिलोम-विवाहा को व्यभिचार के समान ही घृणा और भय की राष्ट्र से देखते रहे है।

उत्तर—जाति-पाँति तोड़क विवाह से नई जातियों पैदा नहीं हो सकतीं। देखिए यदि एक बहुत बड़े हाल (कमरे) में दस-बारह दीवारे है डालकर बहुत-सी छोटी-छोटी कोठरियाँ बना रक्खी हाे, और यदि कोई उन दीवारों को तोड़ डाले, तो उनकं तोड़ने से कोठरियों की संख्या घटेगी ही बढ़ नहीं सकती जातियों की संख्या के बढ़ने का भय तब हो सकता है जब जाति-पाँति-तोड़क लोगों का यह नियम हो कि हम केवल आपस में ही विवाह-सबंध करेंगे। जाति-पति-तोड़कों का द्वार सो सबके लिये खुला है। वे चाहे जहाँ विवाह कर सकते हैं। गौड़ गाँढ़ाें में और बुँजाही बुजाहियों में ही विवाह करें, ऐसा उनका कोई सिद्धांत नहीं। और जाति-पाँति केवल विवाह क्षेत्र की हदबंदी के सिवा और कुछ नहीं।