वहाँ 'गंठि' कर दिया गया है। इसी प्रकार 'अरकाना' (अरकाने दौलत अर्थात् सरदार या उमरा) का 'अरगाना' करके अलग होना अर्य किया गया है।
स्थान स्थान पर शब्दों को व्युत्पत्ति भी दी हुई मिलती है जिसका न दिया जाना ही अच्छा था। उदाहरण के लिये दो शब्द काफी हैं—
पउनारि—पयोनाली, कमल की डंडी।' अहुठ—अनुत्थ, न उटने योग्य।
'पौनार' शब्द की ठीक व्युत्पत्ति इस प्रकार है—सं० पद्य। नाल = प्रा० पउम् + नाल = हिं० एउनाड़ या पौनार। इसी प्रकार अहुट = सं० अर्धचतुर्थ' प्रा० अज्मुट्ठ, अहट्ठ = हिं० अहुठ (साढ़े तीन, 'हूंठा' शब्द इसी से बना है)।
शब्दार्थों से ही टीका का अनुमान भी किया जा सकता है, फिर भी मनोरंजन के लिये कुछ पद्यों की टीका नीचे दी जाती है।—
- (१) अहुटहाथ तन सरवर, हिया कवल तेहि माझ।'
सुधाकरी अर्थ—राजा कहता है कि (मेरा) हाथ तो अहठ अर्थात् शक्ति के लग जाने से सामर्थ्यहीन होकर बेकाम हो गया और (मेरा) तनु सरोवर है जिसके हृदय मध्य अर्थात् बीच में कमल अर्थात पद्मावतो बसी हुई हैं।
ठीक अर्थ—साढ़े तीन हाथ का शरीररूपी सरोवर है जिसके मध्य में हृदयरूपी कमल है।
- (२) हिया थार कुव कंचन लारू। कनक कचोरि उठे जनु चारू।
सुधाकरी अर्थ—हृदय थार में कुच कंचन का लड्डू है। (अथवा) जानों बल करके कनिक (आट) की कचौरी उटती है अर्थात् फूल रही है (चक्राकार उटते हए स्तन कराही में फूलती हुई बदामी रंगकी कचौरी से जान पड़ते हैं)।
ठीक अर्थ—मानो सोने के सुंदर कटोरे उठ हुए (औंध) हैं।
- (३) धानुक आप, बेझ जग कीन्हा।
'बेझ' का अर्थ जात न होने के कारण नापने 'बोक' पाठ कर दिया और इस प्रकार टीका कर दी—
सुधाकारी अर्थ—आप धानुक अर्थात् अहेरी होकर जग (के प्राणी) के बोझ कर लिया अर्थात जगत के प्राणियों को धनु और कटाक्षबाग से मारकर उन प्राणियों का बोझा अर्थात ढेर कर दिया।
ठीक अर्थ—आप धनुर्धर हैं और सारे जगत को वेध्य या लक्ष्य किया है।
- (४) नैहर चाह न पाउब जहाँ।
सुधाकरी अर्थ—जहाँ हम लोग नैहर (जाने) की इच्छा (तक) न करने पावेंगी। ('पाउब' के स्थान पर 'पाउबि' पाठ रखा गया है, शायद स्त्रीलिंग के
[१] एक शब्द 'अध्युष्ट' भी मिलता है। पर वह केवल प्राकृत 'अज्द्र' की व्युत्पत्ति के लिये गढ़ा हुआ जान पड़ता है।
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