पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/१२४

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देश को भक्तिरस मग्‍न किया उसका सबसे अधिक विरोध उन हिंसापूर्ण शाक्तमत और वाममार्ग से दिखाई पड़ा। मंत्र तंत्र के प्रयोग करनेवाले, भूत प्रेत, और यक्षिणी आदि सिद्ध करनेवाले तांत्रिक और शाक्तों के प्रति उस समय समाज के भाव कैसे हो रहे थे, इसका पता राघव चेतन के चरित्रचित्रण से मिलता है। शाक्तमत विहित मंत्र तंत्र और प्रयोग आदि वेदविरुद्ध अनाचार के रूप में समझे जाने लगे थे। गोस्वामी तुलसीदास ने भी कई जगह समाज की प्रवृत्ति का आभास दिया है; जैसे—

जे परिहरि हरि-हर-चरन भजहिं भूतगन घोर।
तिनकी गति मोहिं देहु विधि जो जननी मत मोर॥

प्रेमप्रधान वैष्णव मत के इस पुनरुत्थान में अहिंसा का भाव यों तो सारी जनता में आदरलाभ कर चुका था पर और फकीरों के हृदय में विशेष कर साधुओं और फकीरों के हृदय में विशेष रूप से बद्धमूल हो गया था। क्या हिंदू, क्या मुसलमान, क्या सगुणोपासक, क्या निर्गुणोपासक, सब प्रकार के साधु और फकीर इसका महत्व स्वीकार कर चुके थे। कबीरदास का यह दोहा प्रसिद्ध ही है—

बकरी पाती खाति है ताकी काढ़ी खाल।
जो नर बकरी खात हैं तिनको कौन हवाल?॥

इसी प्रकार और बहुत जगह कबीरदास जी ने पशुहिंसा के विरुद्ध वाणी सुनाई है, जैसे—

दिन को रोजा रहत हैं, राति हनत हैं गाय।
यह तो खून, वह बंदगी, कहु क्यों खुसी खुदाय॥
खुस खाना है खीचरी, माँझ परा टुक लोन।
माँस पराया खाय कै, गला कटावै कौन?॥

इस साधु प्रवृत्ति के अनुसार जायसी ने पशुहिंसा के विरुद्ध अपने विचार, युद्धस्थल के वर्णन में, इस प्रकार प्रकट किए हैं—

जिन्ह जस माँसू भखा परावा। तस तिन्ह कर ले औरन खावा॥

जायसी मुसलमान थे इससे उनकी उपासना निराकारोपासना ही कही जायगी। पर सूफी मत की ओर पूरी तरह झुकी होने के कारण उनकी उपासना में साकारोपासना की सी ही सहृदयता थी। उपासना के व्यवहार के लिये सूफी परमात्मा को अनंत सौंदर्य, अनंत शक्ति और अनंत गुणों का समुद्र मानकर चलते हैं। सूफियों के अद्वैतवाद ने एक बार मुसलमानी देशों में बड़ी हलचल मचाई थी। ईरान, तूरान आदि में आर्य संस्कार बहुत दिनों तक दबा न रह सका। शामी कट्टरपन के प्रवाह के बीच भी उसने अपना सिर उठाया। मंसूर हल्लाज खलीफा के हुक्म से सूली पर चढ़ाया गया पर 'अनलहक' (मैं ब्रह्म हूँ) की आवाज बंद न हुई। फारस के पहुँचे हुए शायरों की प्रवृत्ति इसी अद्वैत पक्ष की ओर रही।

पैगंबरी एकेश्वरवाद (मोनोथेइज्म) और इस अद्वैतवाद (मोनिज्म) में बड़ा सिद्धांतभेद था। एकेश्वरवाद और बात है, अद्वैतवाद और बात। एकेश्वरवाद