पर जायसी ने इस उक्ति को बढ़ाकर कुछ और भी सुसज्जित किया है।
यह तो हुई साहित्य की अभिज्ञता। अब थोड़ा यह भी देखना चाहिए कि और विषयों का ज्ञान उनका कैसा था। पदमावत में ज्यौतिष, हठयोग कामशास्त्र और रसायन की बातें भी आई हैं। हमारी समझ में ज्यौतिष को छोड़कर और बातों की जानकारी उन्हें सत्संग द्वारा प्राप्त हुई थी, न कि ग्रंथों के अध्ययन द्वारा। किसी कवि की रचना में किसी शास्त्र की साधारण बातों का कुछ उल्लेख देख चट यह कह बैठना कि वह उस शास्त्र का बड़ा भारी पंडित था, अपनी भी हँसी करना है और उस कवि की भी। 'कहत सबै बेंदी दिए आँक दसगुनो होत' और 'यह काँचों काँच सो मैं समुझ्यो निरधार' को आगे करके जो लोग कह बैठते हैं कि वाह! वाह! कवि गणित और वेदांतशास्त्र का कैसा भारी पंडित था', उन्हें विचार से काम लेने और वाणी का संयम रखने का अभ्यास करना चाहिए। 'अहा हा!' और 'वाह वाह' वाली इस चाल की समालोचना जितनी ही जल्दी बंद हो उतना ही अच्छा। सिद्धांतों पर विचार करते समय वेदांत की कई बातों की झलक हम पदमावत और अखरावट में दिखा आए हैं। पर उसका यह अभिप्राय नहीं है कि जायसी 'शारीरिक भाष्य' और 'पंचदशी' घोखे बैठे थे। 'पंचभूत' शब्द का प्रयोग उन्होंने पाँच ज्ञानेंद्रियों के अर्थ में किया है। यह बात दर्शनशास्त्र का अभ्यास नहीं सूचित करती।
हिंदुओं के पौराणिक वृत्तों की जानकारी जायसी को थी, पर बहुत पक्की न थी। कुबेर का स्थान अलकापुरी है, इसका पता उन्हें था क्योंकि वह बादशाह की भेजी योगिनी से कहलाते हैं—'गइउँ अलकपुर जहाँ कुबेरू'। 'नारद' को जो उन्होंने शैतान के स्थान पर रखा है, उसका कारण सूफियों की प्रवृत्तिविशेष है। सूफी शैतान को ईश्वर का विरोधी नहीं मानते बल्कि उसकी आज्ञा के अनुसार अनधिकारियों को ईश्वर तक पहुँचने से रोकनेवाला मानते हैं। सरग शब्द जायसी आसमान के अर्थ में ही लाए हैं। हिंदू कथाओं का यदि उन्हें अच्छा परिचय होता तो वे चंद्रमा को स्त्री कभी न बनाते। उनके चंद्रमा वही हैं जिन्हें अवध की स्त्रियाँ 'चंदा माई! धाय आव' कहकर बुलाती हैं। सप्तद्वीपों के तो उन्होंने कहीं नाम नहीं लिए हैं, पर सात समुद्रों के नाम उन्हें समुद्रवर्णन में गिनाने पड़े हैं। इन नामों में दो (किलकिला और मानसर) पुराणों के अनुसार नहीं हैं। पुराणों में एक ही मानसरोवर उत्तर में माना गया है पर जायसी ने उसे सिंहल के पास कहा और सात समुद्रों में गिन लिया है। पर रामायण, महाभारत आदि के प्रसिद्ध प्रसिद्ध पात्रों के स्वरूप से वे अच्छी तरह परिचित थे। इंद्र द्वारा कर्ण से अक्षय कवच ले लिए जाने तथा इसी प्रकार के और प्रसंगों का उन्होंने उल्लेख किया है।
अब उनका भौगोलिक ज्ञान लीजिए। इतिहास और भूगोल दोनों में हमारे देश के पुराने लोग कच्चे होते थे। अपने देश के ही भिन्न भिन्न प्रदेशों और स्थानों की यदि ठीक ठीक जानकारी उस समय किसी को हो तो उसे बहुत समझना चाहिए। अपने देश के बाहर की बात जानना तो कई सौ वर्षों से भारतवासी छोड़े हुए थे। सिंहलद्वीप, लंका आदि के नाम ही जायसी के समय में याद रह गए थे। अतः जायसी को यदि सिंहल की ठीक ठीक स्थिति का पता न हो तो कोई