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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/१६५

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ऊपर जो सकर्मक क्रिया के रूपों के उदाहरण दिए गए हैं वे ठेठ या पूरबी के हैं और उनमें पुरुषभेद बराबर बना हुआ है। पश्चिमी हिंदी की सकर्मक भूतकालिक क्रिया में पुरुषभेद नहीं रहता—जैसे, मैंने किया, तुमने किया, उसने किया। ठेठ अवधी के ऊपर दिए रूपों के अतिरिक्त जायसी और तुलसी दोनों एक सामान्य प्रकारांत रूप भी रखते हैं जिसका प्रयोग वे तीनों पुरुषों, दोनों लिंगों और दोनों वचनों में समान रूप से करते हैं, जैसे—

उत्तम पुरुष (१) का मैं बोआ जनम ओहि भूँजी?
(२) हम तो तोहिं देंखाबा पीऊ।
मध्यम पु° (३) तुइ सिरजा यह समुद अपारा।
(४) अब तुम आइ अँतरपट साजा
प्रथम पु° (५) भूलि चकोर दिस्टि तहँ लाबा
(६) तिन्ह पाबा उत्तिम कैलासू।

वर्तमानकालिक क्रिया के रूप ब्रजभाषा के समान ही होते हैं। केवल मध्यम पुरुष एकवचन के रूप के अंत में संस्कृत के समान 'सि' होता है जैसे करसि, जासि—

तू जुग सारि, चहसि पुनि छूवा।

विधि और आज्ञा में भी यही रूप रहता है, पर कभी कभी संस्कृत के समान 'हि' से अंत होनेवाला रूप भी आता है, जैसे—

'तू सपूत माता कर अस परदेस न लँहि
अब ताईं मुइ होइहि; मुए जाइ तिग देहि

भविष्यत् के रूप ठेठ अवधी के कुछ निज के होते हैं—

उत्तम पुरुष

(१) कौन उतर देबौं तेहि पूछे। (एकवचन) मैं
(२) कौन उतर पाउब पैसारू। (बहुवचन) हम

प्रथम पुरुष

(१) होइहिं नाप औ जोख (एकवचन)
(२) देव बार सब जैहैं बारी। (बहुवचन)

'होइहि' पुराना रूप है। 'ह' के घिस जाने से आजकल 'होई (=होगा) बोलते हैं।

इनमें उत्तम पुरुष के बहुवचन का जो रूप (पाउब) है वह अवधी साहित्य में सब पुरुषों में मिलता है (यद्यपि बोलचाल में उत्तम पुरुष बहुवचन 'हम' के ही साथ आता है)। जायसी और तुलसी दोनों ने सब पुरुषों में और दोनों वचनों में इस रूप का व्यवहार किया है, जैसे—

घर कैसे पैटब मैं छूछे (उत्तम पुरुष, एकवचन)
गुन अवगुन विधि पूछब (प्रथम पुरुष, एकवचन)

पूरबी अवधी में साधारण क्रिया (इनफिनिटिव) का भी यही 'ब' 'वर्गांत' रूप है।

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