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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/१८६

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पदमावत

बड़ गुनवंत गोसाईं, कहै सँवारै वेग।
औ अस गुनी सँवारै, जो गुन करै अनेग॥१०॥

कीन्हेसि पुरुष एक निरमरा। नाम मुहम्मद पूनौ-करा॥
प्रथम जोति विधि ताकर साजी। औ तेहि प्रीति सिहिटि उपराजी॥
दीपक लेसि जगत कहँ दीन्हा। भा निरमल जग, मारग चीन्हा॥
जौ न होत पुरुष उजारा। सूझि न परत पंथ अँधियारा॥
दुसरे ठाँवँ दैव वै लिखे। भए धरमी जे पाढ़त सिखे॥
जेहि नहिं लीन्ह जनम भरि नाऊँ। ता कहँ कीन्ह नरक महँ ठाऊँ॥
जगत बसीठ दई ओहि कीन्हा। दुइ जग तरा नावँ जहि लीन्हा॥

गुन अवगुन विधि पूछब, होइहि लेख औ जोख।
वह बिनउब आगे होइ, करब जगत कर मोख॥११॥

चारि मीत जो मुहमद ठाऊँ। जिन्हहिं दीन्ह जग निरमल नाऊँ॥
अबाबकर सिद्दीक सयाने। पहिले सिदिक दीन वइ आने॥
पुनि सो उमर खिताब सुहाए। भा जग अदल दीन जो आए॥
पुनि उसमान पँडित बड़ गुनी। लिखा कुरान जो आायत सुनी॥.
चौथे अली सिंह बरियारू। सौहँ न कोऊ रहा जुझारू॥
चारिउ एक मतै, एक बाना। एक पंथ औ एक सँधाना॥
बचन एक जो सुना वइ साँचा। भा परवान दुहूँ जग बाँचा॥

जो पुरान विधि पटवा सोई पढ़त गरंथ।
और जो भूले आवत सो सुनि लागे पंथ॥१२॥

सेरसाहि देहली सुलतानू। चारिउ खंड तपै जस भानू॥
ओही छाज छात औ पाटा। सब राजै भुइँ धरा लिलाटा॥
जाति सूर औ खाँड़े सूरा। औ बुधिवंत सबै गुन पूरा॥
सूर नवांए नवखँड वई। सातउ दीप दुनी सब नई॥
तहँ लगि राज खड़ग करि लीन्हा। इसकंदर जुलकरन जो कीन्हा॥
हाथ सुलेमाँ केरि अँगूठी। जग कहँ दान दीन्ह भरि मूठी॥
औ अति गरू भूमिपति भारी। टेकि भूमि सब सिहिटि सँभारी॥


दुनियाई = दुनिया में। बाउर = बावला। अनेग = अनेक। (११) पूनौ करा = पूर्णिमा की कला। प्रथम उपराजी = कुरान में लिखा है कि यह संसार मुहम्मद के लिये रचा गया, मुहम्मद न होते तो यह दुनिया न होती। जगत्-बसीठ = संसार में ईश्वर का संदेसा लानेवाला, पैगंबर। लेख जोख = कर्मों का हिसाब। दुसरे ठाँव... वै लिखे = ईश्वर ने मुहम्मद को दूसरे स्थान पर लिखा अर्थात् अपने से दूसरा दरजा दिया। पाढ़त = पढ़त, मंत्र, आयत। (१२) सिदिक = सच्चा। दीन = धर्म, मत। बाना = रीति, ढंग। संधान = खोज, उद्देश्य, लक्ष्य। (१३) छात = छत्र। पाट = सिंहासन