पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३१
नागमती सुआ संवाद खंड

जेहि दिन कहँ मैं डरति हौं, रैनि छपावौं सूर।
लै चह दीन्ह कवँल कहँ, मोकहँ होइ मयूर॥३॥

धाय सुआ लेइ मारै गई। समुझि गियान हिये मति भई॥
सुआ सो राजा कर बिसरामी। मारि न जाइ चहै जेहि स्वामी॥
यह पंडित खंडित बैरागू। दोष ताहि जेहि सूझ न आगू॥
जो तिरिया के काज न जाना। परै धोख, पाछे पछिताना॥
नागमती नागिनि बुधि ताऊ। सुआ मयूर होइ नहिं काऊ॥
जो न कंत के आयसु माहीं। कौन भरोस नारि कै वाही॥
मकु यह खोज होइ निसि आए। तुरय रोग हरि माथे जाए॥

दुई सो छपाए ना छपै, एक हत्या एक पाप।
अंतहि करहिं बिनास लेइ, सेई साखी देइ आप॥४॥

राखा सुआ, धाय मति साजा। भएउ खोज निसि आए राजा॥
रानी उतर मान सौं दीन्हा। पंडित सुआ मजारी लीन्हा॥
मैं पूछा सिंघल पदमिनी। उतर दीन्ह तुम्ह, को नागिनी?॥
वह जस दिन, तुम निसि अँधियारी। कहाँ बसंत, कील क बारी॥
का तोर पुरुष रैनि कर राऊ। उलू न जान दिवस कर भाऊ॥
का वह पंखि कूट मुँह कूटे। अस बड़ बोल जीभ मुख छोटे॥
जहर चुवै जो जो कह बाता। अस हतियार लिए मुख राता॥

माथे नहिं बैसारिय जौ सुठि सुआ सलोन।
कान टुटैं जेहि पहिरे का लेई करब सो सोन॥५॥

राजै सुनि वियोग तस माना। जैसे हिय विक्रम पछिताना॥
वह हीरामन पंडित सूआ। जो बोलै मुख अमृत चूआ॥
पंडित तुम्ह खंडित निरदोखा। पंडित हुतें परै नहिं धोखा॥
पंडित केरि जीभ मुख सूधी। पंडित बात न कहै बिरूधी॥
पंडित सुमति देइ पथ लावा। जो कुपंथि तेहि पंडित न भावा॥
पंडित राता बदन सरेखा। जो हत्यार रुहिर सो देखा॥
की परान घट आनहु मती। की चलि होह सुआ सँग सती॥

जिनि जानहु कै औगुन, मँदिर सोइ सुखराज।
आयसु मेटें कंत कर, काकर भा न अकाज॥६॥


में पदमावती की ध्वनि है। (४) बिसरामी = मनोरंजन की वस्तु। खंडित वैरागू = वैराग्य में चूक गया इससे तोते का जन्म पाया। काऊ = कमी। मकु = शायद, कदाचित्ँ। तुरय = तुरंग, घोड़ा। ताऊ = तासु, उसकी। हरि = बंदर। तुरय रोग हरि माथे जाए = कहते हैं कि घुड़साल में बंदर रखने से घोड़े नीरोग रहते तथी उनका रोग बंदर पर जाता है। सेइ = वे ही। हत्या घोर पाप ही। (५) कूट = कालकूट, विष। कूटे = कूट कूटकर भरे हुए। बैसारिय = बैठाइए। १. कहानी है कि राजा विक्रम के यहाँ भी

१३