पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२१४

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पदमावत

चाँद जैस धनि उजियारि अही। भा पिउ रोस, गहन अस गही॥
परम सोहाग निबाहि न पारी। भा दोहाग सेवा जब हारी॥
एतनिक दोस बिरचि पिउ रूठा। जो पिउ आपन कहै सो झूठा॥
ऐसे गरब न भूलै, कोई। जेहि डर बहुत पियारी सोई॥
रानी आइ धाय के पासा। सुआ मुआ सेवँर कै आसा॥
परा प्रीतिकंचन महँ सीसा। बिहरि न मिलै, स्याम पै दीसा॥
कहाँ सोनार पास जेहि जाऊँ। देइ सोहाग करै एक ठाऊँ॥

मैं पिउ प्रीति भरोसे, गरब कीन्ह जिउ माँह।
तेहि रिस हौं परहेली, रूसेउ नागर नाँह॥७॥

उतर धाय तब दीन्ह रिसाई। रिस आपुहि, बुधि औरहि खाई॥
मैं जो कहा रिस जिनि करु बाला। को न गयउ एहि रिस कर घाला?
तू रिसभरी न देखेसि आगू। रिस महँ काकर भयड सोहागू?
जेहि रिस तेहि रस जोगै न जाई। बिन रस हरदि होइ पियराई॥
बिरसि बिरोध रिसहि पै होई। रिस मारै, तेहि मार न कोई॥
जेहि रिस कै मरिये, रस जीजै। सो रस तजि रिस कबहुँ न कीजै॥
कंत सोहाग कि पाइय साधा। पावै सोइ जो ओहि चिंत बाँधा॥

रहैं जो पिय के आयसु, औ बरतै होइ हीन।
सोइ चाँद अस निरमल, जनम न होइ मलीन॥८॥

जुआ हारि समुझी मन रानी। सुआ दीन्ह राजा कहँ आनी॥
मानु पीय! हौं गरब न कीन्हा। कंत तुम्हार मरम मैं लीन्हा॥
सेवा करै जो बरहौं मासा। एतनिक औगुन करहु बिनासा॥
जौं तुम्ह देइ नाइ कै गीवा। छाँड़हुँ नहिं बिनु मारे जीवा॥


एक हीरामन तोता था। उसने एक दिन राजा को एक फल यह कहकर दिया कि जो इसे खाएगा वह कभी बूढ़ा न होगा। राजा ने वह फल बगीचे में बोने को दिया। जब फल लगा तब माली ने राजा को लाकर दिया। राजा ने रानी को दिया। रानी ने परीक्षा के लिये कुत्ता को थोड़ा दिया। कुत्ता मर गया। बात यह थी कि बगीचे में उस फल में साँप ने अपना विष डाल दिया था। राजा ने क्रुद्ध होकर तोते को मरवा डाला। कुछ दिन पीछे फिर एक फल लगा जिसे मालिन ने रूठकर मरने के लिये खाया वह बुड्‍ढी से जवान हो गई। राजा को यह सुनकर बड़ा पछतावा हुथा) (६) तुम्ह खंडित = तुमने खंडित या नष्ट किया। सरेख = सज्ञान, चतुर। मती = विचार करके।

(७) दोहाग = = दुर्भाग्य। विरचि = अनुरक्त होकर। देइ सोहाग (क) सौभाग्य, (ख) सोहाग दे। परहेली = अवहेलना की, बेपरवाही की। (८) आगू = मागम, परिणाम। जोगै न जाई = रक्षा नहीं किया जाता। बिरस = अनबन। साधा = साध या लालसा मात्र से। हीन = दीन, नम्र।