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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२३

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साधु कुँवर खंडावत जोगू। मधुमालति कर कीन्ह वियोगू॥
प्रेमावति कह सुरसरि साधा। ऊषा लगि अनिरुध बर बाधा॥

विक्रमादित्य और ऊषा अनिरुद्ध की प्रसिद्ध कथाओं को छोड़ देने से चार प्रेमकहानियाँ जायसी के पूर्व लिखी हुई पाई जाती हैं। इनमें से 'मृगावती' की एक खंडित प्रति का पता तो नागरीप्रचारिणी सभा को लग चुका है। 'मधुमालती' की भी फारसी अक्षरों में लिखी हई एक प्रति मैंने किसी सज्जन के पास देखी थी पर किसके पास, यह स्मरण नहीं। चतुर्भुजदास कृत 'मधुमालती कथा' नागरी प्रचारिणी सभा को मिली है जिसका निर्माणकाल ज्ञात नहीं और जो अत्यंत भ्रष्ट गद्य में है। 'मुग्धावती' और 'प्रेमावती' का पता अभी तक नहीं लगा है। जायसी के पीछे भी 'प्रेमगाथा' की यह परंपरा कुछ दिनों तक चलती रही। गाजीपुरनिवासी शेखहुसेन के पुत्र उसमान (मान) ने संवत् १६७० के लगभग चित्रावली लिखी जिसमें नैपाल के राजा धरनीधर के पुत्र सुजान और रूपनगर के राजा चित्रसेन की कन्या चित्रावली की प्रेमकहानी है। भाषा इसकी अवधी होने पर भी कुछ भोजपुरी लिए है। यह नागरीप्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित हो चुकी है। दूसरी पुस्तक नूरमुहम्मद की 'इंद्रावत' है जो संवत् १७९६ में लिखी गई थी। इसे भी उक्त सभा प्रकाशित कर चुकी है।

इन प्रेमगाथा काव्यों में पहली बात ध्यान देने की यह है कि इनकी रचना बिलकुल भारतीय चरितकाव्यों की सर्गबद्ध शैली पर न होकर फारसी की मसनवियों के ढंग पर हुई है, जिसमें कथा सर्गों या अध्यायों में विस्तार के हिसाब से विभक्त नहीं होती, बराबर चली चलती है, केवल स्थान स्थान पर घटनाओं या प्रसंगों का उल्लेख शीर्षक के रूप में रहता है। मसनवी के लिये साहित्यिक नियम तो केवल इतना ही समझा जाता है कि सारा काव्य एक ही मसनवी छंद में हो पर परंपरा के अनुसार उसमें कथारंभ के पहले ईश्वरस्तुति, पैगंबर की वंदना और उस समय के राजा (शाहे वक्त) की प्रशंसा होनी चाहिए। ये बातें पद्मावत इंद्रावत, मृगावती इत्यादि सबमें पाई जाती है।

दूसरी बात ध्यान देने की यह है कि ये सब प्रेमकहानियाँ पूरवी हिंदी अर्थात् अवधी भाषा में एक नियमक्रम के साथ केवल चौपाई, दोहे में लिखी गई हैं। जायसी ने सात चौपाइयों (अर्धालियों) के बाद एक एक दोहे का क्रम रखा है। जायसी के पीछे गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने 'रामचरितमानस' के लिये यही दोहे चौपाई का क्रम ग्रहण किया। चौपाई और बरवै मानों अवधी भाषा के अपने छंद हैं। इनमें अवधी भाषा जिस सौष्ठव के साथ ढली है उस सौष्ठव के साथ ब्रजभाषा नहीं। उदाहरण के लिये लाल कवि के 'छत्रप्रकाश', पद्माकर के 'रामरसायन' और ब्रजवासीदास के 'ब्रजविलास' को लीजिए। 'बरवै' तो ब्रजभाषा में कहा ही नहीं जा सकता। किसी पुराने कवि ने ब्रजभाषा में बरवै लिखने का प्रयास भी नहीं किया।

तीसरी बात ध्यान देने की यह है कि इस शैली की प्रेमकहानियाँ मुसलमानों के ही द्वारा लिखी गईं। इन भावुक और उदार मुसलमानों ने इनके द्वारा मानो हिंदू जीवन के साथ अपनी सहानुभूति प्रकट की। यदि मुसलमान हिंदी