पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२४

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और हिंदू साहित्य से दूर न भागते, इनके अध्ययन का क्रम जारी रखते, तो उनमें हिंदुओं के प्रति सद्भाव की वह कमी न रह जाती जो कभी कभी दिखाई पड़ती है। हिंदुओों ने फारसी और उर्दू के अभ्यास द्वारा मुसलमानों की जीवनकथाओं के प्रति अपने हृदय का सामंजस्य पूर्ण रूप से स्थापित किया, पर खेद है कि मुसलमानों ने इसका सिलसिला बंद कर दिया। किसी जाति की जीवनकथाओं को बार बार सामने लाना उस जाति के प्रति और सहानुभूति प्राप्त करने का स्वाभाविक साधन है। 'पद्मावत' की हस्तलिखित प्रतियाँ अधिकतर मुसलमानों के ही घर में पाई गई हैं। इतना मैं अपने अनुभव से कहता हूँ कि जिन मुसलमानों के यहाँ यह पोथी देखी गई, उन सबको मैंने विरोध से दूर और अत्यंत उदार पाया।

जायसी का जीवनवृत्त

जायसी की एक छोटी सी पुस्तक 'आखिरी कलाम' के नाम से फारसी अक्षरों में छपी है। यह सन् ९३६ हिजरी में (सन् १५२८ ई° के लगभग) बाबर के समय में लिखी गई थी। इसमें बाबर बादशाह की प्रशंसा है। इस पुस्तक में मलिक मुहम्मद जायसी ने अपने जन्म के संबंध में लिखा है—

भा अवतार मोर नव सदी। तीस बरस ऊपर कवि बदी।

इन पंक्तियों का ठीक तात्पर्य नहीं खुलता। 'नव सदी' ही पाठ मानें तो जन्मकाल ९०० हिजरी (सन् १४९२ के लगभग) ठहरता है। दूसरी पंक्ति का अर्थ यही निकलेगा कि जन्म से ३० वर्ष पीछे जायसी अच्छी कविता करने लगे। जायसी का सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ है पदमावत जिसका निर्माणकाल कवि ने इस प्रकार दिया है—

सन नव से सत्ताइस अहा। कथा आरंभ बैन कवि कहा।

इसका अर्थ होता है कि पदमावत की कथा के प्रारंभिक वचन (अरंभ बैन) कवि ने सन् २७ हिजरी (सन् १५२० ई° के लगभग) में कहे थे। पर कथारंभ में कवि ने मसनवी की रूढि के अनुसार 'शाहे वक्त' शेरशाह की प्रशंसा की है जिसके शासन काल का आरंभ ९४७ हिजरी अर्थात् सन् १५४० ई° से हुआ था। इस दशा में यही संभव जान पड़ता है कि कवि ने कुछ थोड़े से पद्य तो १५२० ई° में ही बनाए थे, पर ग्रंथ को १९ या २० वर्ष पीछे शेरशाह के समय में पूरा किया। इसी से कवि ने भूतकालिक क्रिया 'अहा' ( = था) और 'कहा' का प्रयोग किया है[१]


  1. पहले संस्करण में दिए हुए सन् को शेरशाह के समय में लाने के लिये, 'नव सै सैंतालिस' पाठ माना गया था। फारसी लिपि में सत्ताइस और सैंतालिस में भ्रम हो सकता है। पर 'पद्मावत' का एक पुराना बँगला अनुवाद है उसमें भी 'नव सै सत्ताइस' ही पाठ माना गया है—

    शेख महमद जति जखन रचिल ग्रंथ संख्या सप्तविंश नवशत।

    यह अनुवाद अराकान राज्य के वजीर मगन ठाकुर ने सन् १६५० ई° के पास आलो उजालो नामक एक कवि से कराया था।