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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२५३

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वसंत खंड


चलीं पउनि सब गोहने फूल डार लेइ हाथ।
विस्वनाथ के पूजा, पदमावति के साथ॥३॥

कवँल सहाय चलीं फुलवारों। फर फूलन सब करहिं धमारी॥
आयु आपु महँ करहि जोहारू। यह बसंत सब कर तिवहारू॥
चहै भनोरा भूमक होई। फर औ फूल लिएउ सब कोई॥
फागू खेलि पुनि दाहब होरी। सैतव खेह, उड़ाउब भोरी॥
आजु साज पुनि दिवस न पूजा। खेलि बसंत लेहु कै पूजा॥
भा आयसु पदमावति केरा। बहुरि न आइ करव हम फेरा॥
तस हम कहँ होइहि रखवारी। पुनि हम कहाँ, कहाँ यह बारी॥

पुनि रे चलबव घर आपने, पूजि विसेसर देव।
जेहि काहुहि होइ खेलना, आज, खेलि हँसि लेव॥४॥

काह गही आँव कै डारा। काहू जाँबु बिरह अति भारा॥
कोइ नारँग कोइ भाड़ चिरौंजी। कोइ कटहर, बड़हर, कोइ न्योजी॥
कोइ दारिउँ कोइ दाख औ खीरी। कोइ सदाफर, तुरँज जँभीरी॥
कोइ जायफर, लौंग, सुपारी। कोइ नरियर, कोइ गुवा, छोहारी॥
कोइ विजौंर, करौंदा जूरी। कोइ अमिली, कोइ महुञ्न, खजूरी॥
काहू हरफारेवरि कसौंदा। कोइ अँवरा, कोइ राय करोंदा॥
काहु गही केरा के घोरी। काहू हाथ परी निवकौरी॥

काहू पाई नीयरे, कोड गए किछ दूरि।
काहू खेल भएउ बिष, काहू अमृत मूरि॥५॥

पुनि बीनहि सब फूल सहेली। खोजहिं आस पास सब बेली॥
कोइ केवड़ा, कोइ चंद नेवारी। कोइ केतकि मालति फुलवारी॥
कोइ सदवरग, कुंद, कोइ करता। कोइ चमेलि, नागेसर बरना॥
कोइ मौलसिरि, पुहुप बकौरी। कोई छूपमंजरी गौरी॥
कोइ सिगारहार तेहि पाँहा। कोइ सेवती, कदम के छाहाँ॥
कोइ चंदन फूलहिं जनु फूली। कोइ अजान वीरो तर भूली॥

(कोइ) फूल पाव, कोइ पाती, जेहि के हाथ जो आँट॥
(कोइ) हार चीर अरूभाना, जहाँ छुवै तहँ कॉट॥६॥


डार = डला। (४) धमारि = होलो को क्रीड़ा। जोहार = प्रणाम आदि। मनोरा भूमक = एक प्रकार के गीत जिसे स्त्रियाँ झुंड बाँधकर गाती हैं; इसके प्रत्येक पद में 'मनोरा झूमक' हो यह वाक्य आता है। सैंतब = समेट कर इकट्ठा करेंगी। (५) जाँवु...झारा = जानुन जो विरह की ज्वाला से झुलसी सी दिखाई देती हैं। न्योजी = चिलगोंजा। खीरी = खिरनी। गुवा गुवाक, दक्खिनी सुपारी। (६) कूजा कुब्जक, सफेद जंगलों गूलाब। गौरी = श्वेत मल्लिका। अजानबीरो = एक बड़ा पेड़ जिसके संबंध में कहा जाता है कि उसके नीचे जाने से आदमी को सुध बुध भूल जाती है।