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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२६४

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पदमावत


तू मन नाथु मारि के साँसा। जो पै मरहि अबहिं करु नासा॥
परगट लोकचार कहु॒ बाता। गुपुत लाउ मन जासों राता॥
'हौं हौं' कहत सबै मति खोई। जौं तू नाहिं आहि सब कोई॥
जियतहि जुरै मरै एक वारा। पुनि का मीचु, को मारै पारा॥
आपुहि गुरु सो आपुहि चेला। आपुहि सब औ आपु अकेला॥
आपुहि मीच जियन पुनि, आपुहि तन मन सोइ!
आपुहि आपु करै जो चाहै, कहाँ सो दूसर कोइ?॥१०॥


 

लोकचार = लोकाचार की। जुरै = जुट जाय।